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________________ ४५४ प्राकृत साहित्य का इतिहास बनिये से दोस्ती कर ली। अपनी विद्या के बल से वह एक माशा सोने का दो माशा सोना बना देता था। एक बार बनिये ने लोभ में आकर उसे बहुत सा सोना दे दिया, और वह लेकर चंपत हो गया। चौथा पुत्र प्रचुर रिद्धिधारी किसी लिंगी का शिष्य बन गया और उसकी सेवा करने लगा। एक दिन आधी रात के समय वह उसका सब धन लेकर चंपत हुआ। राजपुत्रकथानक में महामल्लों के युद्ध का वर्णन है । भवदेव: कथानक में भवदेव नाम के वणिक्पुत्र की कथा है। एक बार कुछ महाजन राजा के दर्शन करने गये। राजा ने कुशलपूर्वक प्रश्न किया-नगरी में चोरों का उपद्रव तो नहीं है ? उच्छल दुष्ट लोग तो परेशान नहीं करते ? लाँच लेनेवाले तो आप लोगों को कष्ट नहीं देते ? एक महाजन ने उत्तर दिया-देव ! आपके प्रताप से सब कुशल है, केवल चोरों का उपद्रव बढ़ रहा है। सुजस श्रेष्टि और उसके पुत्रों के कथानक में सुजस श्रेष्ठि के पाँच पुत्रों की कथा दी है। कोई खराब काम करने पर पिता यदि पुत्रों को डाटता-डपटता तो उनकी माँ को बहुत बुरा लगता। यह देखकर पिता ने पुत्रों को बिलकुल कुछ कहना ही बंद कर दिया। परिणाम यह हुआ कि वे पाँचों बुरी संगत में पड़कर बिगड़ गये और अपनी माँ की भी अवहेलना करने लगे। धनपाल और बालचन्द्र के कथानक में मुकुंदमंदिर का उल्लेख , है । वृद्ध विलासिनियाँ अनाथ बालिकाओं को फँसा कर उनसे वेश्यावृत्ति कराने के लिये उन्हें गीत, नृत्य आदि की शिक्षा देती थीं। भरतनृपकथानक में श्रीपर्वत का उल्लेख है, यहाँ एक गुटिकासिद्ध पुरुष रहा करता था। यहाँ पाराशर की कथा दी है। प्रयाग और पुष्कर तीर्थों का उल्लेख है। __दूसरे अधिकार में श्रावकों के १२ व्रतों की कथायें हैं। व्यापारी ऊँटों पर माल लाद कर ले जाया करते थे। प्रश्नोत्तर गोष्टी देखियेप्रश्न-(१) पापं पृच्छति ? विरतौ को धातुः ? कीदृशः कृतकपक्षी ? उत्कंठयन्ति के वा विलसन्तो विरहिणीहृदयम् ?
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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