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________________ आख्यानमणिकोश का पता लगता है। श्लेष आदि अलंकारों का यथेष्ट प्रयोग हुआ है। चतुर्विधबुद्धिवर्णन नामक अधिकार में भरत, नैमित्तिक और अभय के आख्यानों का वर्णन है। दानस्वरूपवर्णनअधिकार में धन, कृतपुण्य, द्रोण आदि तथा शालिभद्र, चक्रचर, चन्दना, मूलदेव और नागश्री ब्राह्मणी के आख्यान हैं। चन्दना का आख्यान महावीरचरिय से टीकाकार ने उद्धृत किया है। शीलमाहात्म्यवर्णन अधिकार में दवदन्ती (दमयन्ती), सीता, रोहिणी और सुभद्रा; तपोमाहात्म्यवर्णन-अधिकार में वीरचरित, विसल्ला, शौर्य और रुक्मिणीमधु; तथा भावनास्वरूपवर्णनअधिकार में द्रमक, भरत और इलापुत्र के आख्यान हैं । भरत का आख्यान अपभ्रंश में है। सम्यक्त्ववर्णनाधिकार में सुलसा तथा जिनबिंबदर्शनफलाधिकार में सेज्जंभव और आद्रककुमार के आख्यान हैं । जिनपूजाफलवर्णनअधिकार में दीपकशिखा, नवपुष्पक और पद्मोत्तर, तथा जिनवंदनफलाधिकार में बकुल और सेटुबक, तथा साधुवन्दनफलवर्णनअधिकार में हरि की कथायें हैं। सामायिकफलवर्णनअधिकार में जैनधर्म के प्रभावक सम्प्रति राजा तथा जिनागमश्रवणफलाधिकार में चिलातीपुत्र और रोहिणेय नामक चोरों के आख्यान हैं। नमस्कारपरावर्तनफल-अधिकार में गो, पड्डक (भैसा), फणी (सर्प), सोमप्रभ और सुदर्शना के आख्यान हैं। सोमप्रभ का आख्यान अपभ्रंश में है। सुदर्शनाआख्यान में स्त्रियों को अयश का निवास आदि विशेषणों से उल्लिखित किया है। इन्द्रमहोत्सव का उल्लेख है। स्वाध्यायअधिकार में यव, तथा नियमविधानफलाधिकार में दामन्नक, ब्राह्मणी, चंडचूडा, गिरिडुम्ब और राजहंस के आख्यान हैं। ब्राह्मणी-आख्यान में रात्रिभोजन-त्याग का उपदेश देते हुए रात्रि की परिभाषा दी है दिवस्याष्टमे भागे मन्दीभूते दिवाकरे । नक्तं तद् विजानीहि न भक्तं निशि भोजने ॥
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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