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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास था। पाटण, जैसलमेर, खंभात, लिंबडी, जयपुर, ईडर आदि स्थानों में ये जैन भंडार स्थापित किए गये थे। जयसेणकहा में स्त्रियों के प्रति सहानुभूतिसूचक सुभाषित __ कहे गये हैं वरि हलिओ वि हु भत्ता अनन्नभजो गुणेहि रहिओ वि । __ मा सगुणो बहुभज्जो जइराया चक्कवट्टी वि॥ -अनेक पत्नीवाले सर्वगुणसम्पन्न चक्रवर्ती राजा की अपेक्षा गुणविहीन एक पत्नीवाला किसान कहीं श्रेष्ठ है। वरि गन्भम्मि विलीणा चरि जाया कंत-पुत्त परिहीणा । मा ससवत्ता महिला हविज्ज जम्मे वि जम्से वि॥ -पति और पुत्ररहित स्त्री का गर्भ में नष्ट हो जाना अच्छा है, लेकिन जन्म-जन्म में सौतों का होना अच्छा नहीं। संकरहरिबंभाणं गउरीलच्छी जहेव बंभाणी । तह जइ पइणो इट्ठा तो महिला इयरहा छेली ॥ -जैसे गौरी शंकर को, लक्ष्मी विष्णु को, ब्राह्मणी ब्रह्मा को इष्ट है, वैसे ही यदि कोई पत्नी अपने पति को इष्ट है तो ही वह महिला है, नहीं तो उसे बकरी समझना चाहिए । धन्ना ता महिलाओ जाणं पुरिसेसु कित्तिमो नेहो । पाएण जओ पुरिसा महुयरसरिसा सहावेणं॥ -जिन स्त्रियों का पुरुषों के प्रति कृत्रिम स्नेह है उन्हें भी अपने को धन्य समझना चाहिये, क्योंकि पुरुषों का स्वभाव प्रायः भौंरों जैसा होता है। उप्पण्णाए सोगो वड्दतीए य वड्ढए चिंता । परिणीयाए उदन्तो जुवइपिया दुक्खिओ निन्छ । -उसके पैदा होने पर शोक होता है, बड़ी होने पर चिंता बढ़ती है, विवाह कर देने पर उसे कुछ न कुछ देते रहना पड़ता है, इस प्रकार युवती का पिता सदा दुखी रहता है। अनेक कहावतें भी यहाँ कही गई हैंमरइ गुडेणं चिय तस्स विसं दिजए किंव।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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