SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 453
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णाणपंचमीकहा प्रयोग किया गया गया है। द्वीप, नगरी आदि का वर्णन आलंकारिक और श्लेषात्मक भाषा में है। जहाँ-तहाँ विविध सुभाषित और सदुक्तियों के प्रयोग दिखाई देते हैं । ___ इस कृति में दस कथायें हैं जो लगभग २,००० गाथाओं में गुंफित हैं। पहली कथा जयसेणकहा और अन्तिम कथा भविस्सयत्त कहा है। ये दोनों अन्य कथाओं की अपेक्षा लंबी हैं।' प्रत्येक कथा में ज्ञानपंचमी व्रत का माहात्म्य बताया गया है । ज्ञानप्राप्ति के एकमात्र साधन पुस्तकों की रक्षा को प्राचीन काल में अत्यन्त महत्व दिया जाता था। पुस्तक के पन्नों को शत्रु की भाँति खूब मजबूती से बाँधने का विधान है। हस्तलिखित प्रतियों में पाये जानेवाला निम्नलिखित श्लोक इस कथन का साक्षी है अग्ने रक्षेजलाद्रक्षेन्मूषकेभ्यो विशेषतः । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ।। उदकानलचौरेभ्यो मूषकेभ्यो हुताशनात् । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ।। -कष्टपूर्वक लिखे हुए शास्त्रों की बड़े यत्न से रक्षा करनी चाहिए, विशेषकर अग्नि, जल, चूहे और चोरों से उसे बचाना चाहिये। __ इसलिए जैन आचार्यों ने कार्तिक शुक्ल पंचमी को ज्ञानपंचमी घोषित कर इस शुभ दिवस पर शास्त्रों के पूजन, अर्चन, संमार्जन, लेखन और लिखापन आदि का विधान किया है | सिद्धराज, कुमारपाल आदि राजा तथा वस्तुपाल और तेजपाल आदि मंत्रियों ने इस प्रकार के ज्ञानभंडारों की स्थापना कर पुण्यार्जन किया १. इस आख्यान के आधार पर धनपाल ने अपभ्रंश में भविसत्तकहा नाम के एक सुन्दर प्रबंधकान्य की रचना की है। इस कथानक का संस्कृत रूपान्तर मेघविजयगणि ने 'भविष्यदत्तचरित्र' नाम से किया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy