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________________ कुवलयमाला ४२३ यहाँ से कुवलयमाला का आख्यान आरंभ होता है। नगर की महिलायें अपने घड़ों में पानी भर कर ले जाती हुई कुवलयमाला के सौंदर्य की चर्चा करती चलती हैं। अयोध्यावासी कार्पटिक वेषधारी राजकुमार कुवलयचंद कुवलयमाला की खोज में विजया नाम की नगरी में आया हुआ है। कुवलयमाला का समाचार जानने के लिए वह चट्टों (छात्रों) के किसी मठ में प्रवेश करता है। इस मठ में लाड, कन्नड, मालव, कन्नौज, गोल्ल, मरहठ्ठ, सोरह, ढक्क, श्रीकंठ और सिंधुदेश के छात्र रहते है। यहाँ धनुर्वेद, ढाल, असि, शर, लकड़ी, डंडा, कुंत आदि चलाने, तथा लकुटियुद्ध, बाहुयुद्ध, नियुद्ध ( मल्लयुद्ध), आलेख्य, गीत, वादित्र, भाण, डोंबिल्लिय (डोंबिका) और सिग्गड (शिंगटक ) आदि विद्याओं की शिक्षा दी जाती थी। व्याख्यानमंडलियों में व्याकरण, बुद्धदर्शन, सांख्यदर्शन, वैशेषिकदर्शन, मीमांसा, न्यायदर्शन, अनेकांतवाद तथा लौकायतिकों के दर्शन पर व्याख्यान होते थे। यहाँ के उपाध्याय अत्यंत कुशल थे और वे निमित्त, मंत्र, योग, अंजन, धातुवाद, यक्षिणी-सिद्धि, गारुड, ज्योतिष, स्वप्न, रस, बंध, रसायन, छंद, निरुक्त, पत्रच्छेद्य ( पत्ररचना), इन्द्रजाल, दंतकर्म, लेपकर्म, चित्रकर्म, कनककर्म, भूत, तंत्रकर्म आदि शास्त्र पढ़ाते थे। १. हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन (८.४) में डोंबिका, भाण, प्रस्थान, शिंगक, भाणिका, प्रेरण, रामाक्रीड, हल्लीसक, रासक, गोष्ठी, श्रीगदित और काव्य ये गेय के भेद बताये हैं। अभिनवभारती (१, पृष्ठ १८३ ) में डोंबिका का निम्नलिखित लक्षण किया है छन्नानुरागगर्भाभिरुक्तिभियंत्र भूपतेः । आवज्यते मनः सा तु ममृणा डोंबिका मता ॥ षिद्क का लक्षण देखिये___ सख्याः समक्षं भर्तुर्यदुद्धतं वृत्तमुच्यते । मसूणं च क्वचिधूर्त-चरितं षिवस्तु यः ॥ २. कुट्टिनीमत (श्लोक २३६) और कादंबरी (पृ० १२६, काले
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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