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________________ ५१८ प्राकृत साहित्य का इतिहास बृहत्कथा), व्यास, वाल्मीकि, बाण (और उनकी कादंबरी), विमल, रविषेण, जडिल, देवगुप्त, प्रभंजन और हरिभद्र, तथा सुलोचना नामक धर्मकथा का उल्लेख किया है। क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह आदि का परिणाम दिखाने के लिये यहाँ अनेक सरस कथाओं का संग्रह किया गया है। कथासुंदरी की नववधू के साथ तुलना करते हुए उद्योतनसूरि ने लिखा है सालंकारा सुहया ललियपया मउय-मंजु-संलावा । सहियाण देइ हरिसं उव्वूढा णववहू चेव ॥ -अलंकार सहित, सुभग, ललितपदवाली, मृदु, और मंजु संलाप से युक्त कथासुंदरी सहृदय जनों को आनन्द प्रदान करनेवाली परिणीत नववधू के समान शोभित होती है। __ धर्मकथा, अर्थकथा और कामकथा के भेद से यहाँ तीन प्रकार की कथायें बताई गयी हैं। धर्मकथा चार प्रकार की होती है-अक्खेवणी, विक्खेवणी, संवेगजणणी और निव्वेयजणणी । पहली मन के अनुकूल, दूसरी मन के प्रतिकूल, तीसरी ज्ञान की उत्पत्ति में कारण और चौथी वैराग्य की उत्पत्ति में सहायक होती है। ___ आरंभ में मध्यदेश में विनीता नाम की नगरी का वर्णन है। यहाँ की दूकानों पर कुंकुम, कपूर, एला, लवंग, सोना, चाँदी, शंख, चामर, घंटा तथा विविध प्रकार की औषधि और चंदन आदि वस्तुएँ बिकती थीं। बनारस का बहुत महत्त्व था । जब कहीं सफलता न मिलती तो लोग वाराणसी जाते तथा जूआ खेलकर, चोरी करके, गाँठ काटकर, कूट रचकर और ठगई करके अर्थ का उपार्जन करते । धन प्राप्ति के निर्दोष उपाय देखिये १. पउमचरिय के कर्ता विमलसूरि । २. संस्कृत पद्मचरित के कर्ता दिगम्बर विद्वान् रविषेण । ३. जटिल मुनि ने वरांगचरित की रचना की है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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