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________________ कुवलयमाला ४१७ है, उस समय नरहस्ति श्रीवत्सराज यहाँ राज्य करता था । इस प्रन्थ के अन्त में दी हुई प्रशस्ति से ग्रन्थकार के सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण बातों का पता लगता है। उत्तरापथ में चन्द्रभागा नदी के तट पर पव्वइया नामक नगरी थी जहाँ तोरमाण अथवा तोरराय नामका राजा राज्य करता था। इस राजा के गुरु गुप्तवंशीय आचार्य हरिगुप्त के शिष्य महाकवि देवगुप्त थे । देवगुप्त के शिष्य शिवचन्द्रगणि महत्तर मिल्लमाल के निवासी थे। उनके शिष्य यक्षदत्त थे। इनके णाग, बिंद, (वृन्द ) मम्मड, दुग्ग, अग्निशर्मा, बडेसर (बटेश्वर ) आदि अनेक शिष्य थे जिन्होंने देवमन्दिर का निर्माण कराकर गुर्जर देश को रमणीय बनाया था। इन शिष्यों में एक का नाम तत्त्वाचार्य था, ये ही तत्त्वाचार्य कुवलयमाला के कर्ता उद्योतनसूरि के गुरु थे। उद्योतनसूरि को वीरभद्रसूरि ने सिद्धान्त और हरिभद्रसूरि ने युक्तिशास्त्र की शिक्षा दी थी। कुवलयमाला काव्यशैली में लिखा हुआ प्राकृत कथा-साहित्य का एक अनुपम प्रन्थ है। गद्य-पद्यमिश्रित महाराष्ट्री प्राकृत की यह प्रसादपूर्ण रचना चंपू की शैली में लिखी गई है। महाराष्ट्री के साथ इसमें पैशाची, अपभ्रंश और कहीं संस्कृत का भी प्रयोग हुआ है जिससे प्रतीत होता है कि उद्योतनसूरि ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अनेक देशी भाषाओं की जानकारी प्राप्त की थी। मठों में रहलेवाले विद्यार्थियों और बनिज-व्यापार के लिये दूर-दूर तक भ्रमण करनेवाले वणिकों की बोलियों का इसमें संग्रह है। प्रेम और श्रृंगार आदि के वर्णनों से युक्त इस कृति में अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। बीच-बीच में सुभाषित और मार्मिक प्रश्नोत्तर, प्रहेलिका आदि दिखाई दे जाते हैं । ग्रन्थ के आद्योपान्त पढ़ने से लेखक के विशाल अध्ययन और सूक्ष्म अन्वीक्षण का पता लगता है। ग्रन्थ की रचना-शैली पर बाण की कादंबरी, त्रिविक्रम की दमयंतीकथा और हरिभद्रसूरि की समराइच्चकहा आदि का प्रभाव परिलक्षित होता है। लेखक ने पादलिप्त (और उनकी तरंगवती), सातवाहन, षट्पर्णक, गुणाव्य (और उनकी २७ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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