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________________ वसुदेवहिण्डी ३८७ के लिये बहुत सी कन्यायें भेजीं। रानी को यह देखकर बहुत बुरा लगा। उसने महल से गिर कर मर जाने की धमकी दी। यह देखकर भरत ने उन्हें गणों को प्रदान कर दी, तभी से वे गणिका कही जाने लगीं। मुख नामक अधिकार में शंब और भानु की क्रीड़ाओं का वर्णन है । भानु के पास शुक था और शंब के पास सारिका । दोनों सुभाषित कहते हैं । एक सुभाषित सुनिये उक्कामिव जोइमालिणिं, सुभुयंगामिव पुफियं लतं । विबुधो जो कामवत्तिणिं, मुबई सो सुहिओ भविस्सइ । -अग्नि से प्रज्वलित उल्का की भाँति और भुजंगी से युक्त पुष्पित लता की भाँति जो पण्डित कामवर्तिनी ( काममार्ग) का त्याग करता है, वह सुखी होता है। दोनों में द्यूतक्रीड़ायें होती हैं। प्रतिमुख में अन्धकवृष्णि का परिचय देते हुए उसके पूर्वभव का सम्बन्ध बताया गया है। __ शरीरअध्ययन प्रथम लंभक से आरम्भ होकर २६ वें लंभक में समाप्त होता है । सामा-विजया नामके प्रथम लंभक में समुद्रविजय आदि नौ वसुदेवों के पूर्वभवों का वर्णन है। यहाँ परलोक और धर्म के फल में विश्वास पैदा करने के लिये सुमित्रा की कथा दी हुई है | वसुदेव घर का त्याग करके चल देते हैं । सामलीलंभक में सामली का परिचय है। गन्धर्वदत्तालंभक में विष्णुकुमार का चरित, विष्णुगीतिका की उत्पत्ति, चारुदत्त की आत्मकथा और गन्धर्वदत्ता से परिचय, अमितगति विद्याधर का परिचय तथा अथर्ववेद की उत्पत्ति दी हुई है । एक गीत सुनिये अट्ठ णियंठा सुरडं पविठ्ठा, कविट्ठस्स हेट्ठा अह सन्निविट्ठा। पडियं कविढं भिण्णं च सीसं, अव्यो अव्वो ति बाहरंति हसंति सीसा ॥
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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