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________________ ३८५ वसुदेवहिण्डी लगी, उसकी आँखें डबडबा आई, और निरुत्तर होकर वह चुपचाप बैठ गई। उसने सौगन्ध खाकर विश्वास दिलाया कि वह इस संबंध में जरूर कुछ करेगी। इसके बाद माँ अपनी लड़की को आश्वासन देकर घर लौट गई। धम्मिल की माँ ने अपने पति से पूछताछ की। पति ने उत्तर दिया-"तुम अनजान हो, जबतक बालक का पढ़ने में मन लगे तबतक प्रसन्न ही होना चाहिये, फिर तुम क्यों विषाद करती हो ? नई नई विद्या को यदि याद न किया जाये तो तेल के बिना दीपक की भाँति वह नष्ट हो जाती है। अतएव तुम अनजान मत बनो। जबतक बाल्यावस्था है तबतक विद्या का अभ्यास करते रहना चाहिये ।” पुत्रस्नेह के कारण माँ ने कहा-"अधिक पढ़ने से क्या लाभ ? मनुष्यजीवन के सुख का आनन्द भी तो उठाना चाहिये ।" पति के मना करने पर भी पहले उपभोग-क्रीडा में कुशलता प्राप्त करने के लिये उसकी माँ ने अपने बेटे को ललित-गोष्ठी में शामिल करा दिया। अपने मातापिता के साथ उसकी जो बातचीत हुई थी, उसने सब धाय को सुना दी। और वह गोष्टी के सदस्यों के साथ उद्यान, कानन, सभा और वनों में आनन्दपूर्वक समय बिताने लगा। धम्मिल्ल अपनी स्त्री को छोड़कर वसन्ततिलका नामक गणिका के घर में रहने लगा जिससे उसकी माँ और स्त्री को बहुत दुःख हुआ। एक दिन धम्मिल्ल जब शराब के नशे में धुत्त पड़ा हुआ था, वसन्ततिलका की माँ ने उसे घर से निकाल बाहर किया । धम्मिल्ल को अगडदत्त मुनि के दर्शन हुए और इस अवसर पर अगडदत्त ने अपने पूर्वभव का वृत्तान्त सुनाया। धम्मिल्ल ने अनेक कुलकन्याओं के साथ विवाह किया । वसन्तसेना को जब इसका पता लगा तो उसने सब आभरणों का त्याग कर दिया, मलिन जीर्ण वस्त्र धारण किये, तांबूल का भक्षण करना छोड़ दिया और केवल एक वेणी बांधकर भुजंग के समान दिखाई २५प्रा० साथ
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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