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________________ ૨૮૪ प्राकृत साहित्य का इतिहास से सगासं गंतूण सव्वं साहिउँ पयत्ता । जहाभूयत्थं तं सोऊण से माया आकंपियसरीसहियया बाहंसुपप्पुयच्छी णिरुत्तरा तुहिक्का ठिया। पच्छा य णाए ससवहं पत्तियाविया। ततो सा तं घूयं आसासिऊण अप्पणा णियघरं गया। माया य से पइणो मूलं गंतूण सव्वं जहाभूयं परिकहेइ । तेण य भणिया अजाणाए ! जाव बालो विज्जासु य अणुरत्तबुद्धी णणु ताव ते हरिसाइयव्वं, किं विसायं वञ्चसि ? अहिणवसिक्खिया विजा अगुणिज्जती णेहरहिओ विव पईवो विणासं वञ्चइ, तं मा अयाणुगा होही। जाव बालो ताव विज्जाउ गुणेउ । तीए पुत्तवच्छलाए भणियं-किं वा अइबहुएणं पढिएणं ? माणुस्सयवसुहं अणुभवउ | 'उवभोगरइवियक्खणो होउ' ति चिंतेऊण पइणा वारिजंतीए वि ललियगोट्ठीए पवेसिओ। सो य अम्मापिउसलायो धाईते से सम्बो कहिओ। तओ सो गोट्ठियजणसहिओ उज्जाणकाणणसभावणंतरेसु विनाणनाणाइसएसु अण्णोण्णमतिसयंतो बहुकालं गमेइ। -एक बार की बात है, धम्मिल्ल की सास अपनी लड़की से मिलने उसके घर आई। गृहस्वामी ने अपने वैभव के अनुसार और रिश्तेदारी को ध्यान में रखते हुए उसका आदर-सत्कार किया। वह अपनी लड़की से मिलने अन्दर गई, कुशल-समाचार पूछे। लड़की ने लज्जा से नीचे मुँह करके अपने पतिद्वारा लौकिक धर्म-उपभोग का परित्याग करने की बात अपनी माँ को सुना दी___ "वह पास में चौकोण पट्टी रखकर, रेवा नदी के जल से पवित्र सफेद रंग की खड़िया मिट्टी से, मुझे अकेली को सोती छोड़, उदासीन भाव से, सारी रात 'समान सवर्ण' 'समान सवर्ण' घोखता रहता है।" ___ यह सुनकर लड़की की माँ बहुत क्रुद्ध हुई, और स्त्री-स्वभाव के कारण अपनी पुत्री के स्नेहवश उसने अपनी समधिन से सब बात कही। यह सुनकर उसकी समधिन काँपने
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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