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________________ ३८२ प्राकृत साहित्य का इतिहास शरीरविभाग आरंभ होता है, और दूसरे अंश के २६ वे लंभक तक चलता है। वसुदेव-भ्रमण के वृत्तान्त की आत्मकथा का विस्तार इसी विभाग से शुरू होता है। उक्त लंभकों में १६ और २०वें लंभक उपलब्ध नहीं, तथा २८वां लंभक अपूर्ण है। वसुदेवहिण्डी के दूसरे खंड के कर्ता धर्मसेनगणि हैं । इस खंड में नरवाहनदत्त की कथा का उल्लेख है। गुणाव्य की बृहत्कथा की भांति इसमें शृंगारकथा की मुख्यता होने पर भी बीच-बीच में धर्म का उपदेश दिया गया है । कुल मिलाकर दोनों खंडों में १०० लंभक हैं। दूसरे खंड के अनुसार वसुदेव सौ वर्ष तक परिभ्रमण करते रहे और सौ कन्याओं के साथ उन्होंने विवाह किया। ___ वसुदेवहिण्डी मुख्यतया गद्यात्मक समासांत पदावलि में लिखी गई एक विशिष्ट रचना है; बीच में पद्य भी आ जाते हैं। भाषा सरल, स्वाभाविक और प्रसादगुणयुक्त है, संवाद चुस्त हैं । भाषा प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है जिसकी तुलना चूर्णी-मन्थों से की जा सकती है, दिस्सहे, गच्छीय, वहाए, पिव, गेण्हेप्पि आदि रूप यहाँ मिलते हैं, देशी शब्दों के प्रयोग भी हुए हैं। वसुदेव के भ्रमण की कथा के साथ इसमें अनेक अंतर्कथायें हैं जिनमें तीर्थकरों तथा अन्य शलाकापुरुषों के जीवनचरित हैं। बीच । १. सोमदेव के कथासरित्सागर में भी लावाणक लंबक, सूर्यप्रभलंबक, महाभिषेक लंबक इत्यादि नाम दिये गये हैं। वसुदेव के परिभ्रमण की भाँति नरवाहनदत्त के परिभ्रमण, पराक्रम आदि की कथा यहाँ वर्णित है। नरवाहनदत्त का विवाह जिस कन्या से होता है उसी के नाम से लंबक कहा जाता है, जैसे रत्नप्रभा लंबक, अलंकारवती लंबक आदि। २. वसुदेवहिण्डी की भाषा के संबंध में देखिये डॉक्टर आल्सडोर्फ का 'बुलेटिन ऑव द स्कूल ऑव ओरिण्टिएल स्टडीज़' जिल्द ८ में प्रकाशित लेख, तथा वसुदेवहिण्डी के गुजराती अनुवाद का उपोद्धात ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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