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________________ वसुदेवहिण्डी ३८१ पुष्पयोनिशास्त्र (पुप्फजोणिसत्थ) का भी यहाँ उल्लेख है । वसुदेवहिण्डी वसुदेवहिण्डी में कृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण (हिंडी) का वृत्तान्त है इसलिये इसे वसुदेवचरित नाम से भी कहा गया है । आगमबाह्य ग्रन्थों में यह कृति कथा-साहित्य में प्राचीनतम गिनी जाती है। आवश्यकचूर्णी के को जिनदासगणि ने इसका उपयोग किया है। इसमें हरिवंश की प्रशंसा की गई है और कौरव-पांडवों को गौण स्थान दिया गया है। निशीथविशेषचूर्णी में सेतु और चेटककथा के साथ वसुदेवचरित का उल्लेख है। इस ग्रंथ के दो खंड हैं। पहले खंड में २६ लभक ११,००० श्लोकप्रमाण हैं और दूसरे खंड में ७१ लंभक १७,००० श्लोकप्रमाण हैं। प्रथम खंड के कर्ता संघदासगणि वाचक, और दूसरे के धर्मसेनगणि हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विशेषणवती में इस ग्रंथ का उल्लेख किया है, इससे संघदासणि का समय ईसवी सन् की लगभग पांचवीं शताब्दी माना जाता है। प्रथम खंड' के बीच का और अन्त का भाग खंडित है, दूसरा खंड अप्रकाशित है। कथा का विभाजन छह अधिकारों में किया • गया है-कहुप्पत्ति ( कथा की उत्पत्ति ), पीढिया ( पीठिका) मुह (मुख), पडिमुह (प्रतिमुख), सरीर (शरीर), और उवसंहार (उपसंहार)। कथोत्पत्ति समाप्त होने पर धम्मिल्लहिण्डी (धम्मिल्लचरित) प्रारंभ होता है और इसके समाप्त होने पर क्रमशः पीठिका, मुख और प्रतिमुख आरंभ होते हैं। तत्पश्चात् प्रथम खंड के प्रथम अंश में सात लंभक हैं । यहाँ से १. मुनि पुण्यविजय जी द्वारा संपादित आत्मानन्द जैन ग्रंथमाला, भावनगर की ओर से सन् १९३० और सन् १९३१ में प्रकाशित । इसका गुजराती भाषांतर प्रोफेसर सांडेसरा ने किया है जो उक्त ग्रंथमाला की ओर से वि० सं० २००३ में प्रकाशित हुआ है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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