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________________ प्रेमाख्यान हो जाता | फिर माता-पिता को इस प्रेमानुराग का समाचार मिलते ही प्रीतिदान आदि के साथ दोनों का विवाह हो जाता, और इस प्रकार विप्रलंभ संयोग में बदल जाता। कभी किसी युवती की सर्पदंश से रक्षा करने या उसे उन्मत्त हाथी के आक्रमण से बचाने के उपलक्ष्य में कन्या के माता-पिता किसी युवक के बल व पौरुष से मुग्ध हो उसे अपनी कन्या दे देते। किसी सुंदर और गुणसम्पन्न राजा या राजकुमार को प्राप्त करने के लिये भी कन्यायें लालायित रहतीं और इसके लिए स्वयंवर का आयोजन किया जाता। कितनी ही बार प्रेम हो जाने पर, मातापिता की अनुमति न मिलने से युवक और युवती अन्यत्र जाकर गांधर्व विवाह कर लेते। शृङ्गारकथा-प्रधान वसुदेवहिण्डी का धम्मिल्लकुमार रतिक्रीड़ा में कुशलता प्राप्त करने के लिये वसंतसेना नाम की गणिका के घर रहने लगता है। कुवलयमाला में प्रेम और शृङ्गाररसपूर्ण अनेक विस्मयकारक चित्र प्रस्तुत किये गये हैं। वासभवन में प्रवेश करते समय कुवलयमाला और उसकी सखियों के बीच प्रश्नोत्तर होते हैं। तत्पश्चात् वर-वधू प्रेमालाप, हास्य-विनोद और कामकेलिपूर्वक मिलन की प्रथम रात्रि व्यतीत करते हैं। कथाकोषप्रकरण में भी प्रेमालाप के उत्कट प्रसंग उपस्थित किये हैं । ज्ञानपंचमीकहा, सुरसुंदरीचरित और कुमारपालचरित में जहाँ-तहाँ प्रेम और शृंगाररस-प्रधान उक्तियाँ दिखाई दे जाती हैं। प्राकृतकथासंग्रह में सुंदरी देवी का आख्यान एक सुंदर प्रेमाख्यान कहा जा सकता है। सुंदरी देवी विक्रम राजा के गुणों का श्रवण कर उससे प्रेम करने लगती है। उसके पास वह एक तोता भेजती है। तोते के पेट में से एक सुंदर हार और कस्तूरी से लिखा हुआ एक पत्र निकलता है। पत्र पढ़कर विक्रमराजा सुंदरी देवी से मिलने के लिये व्याकुल हो उठता है, और तुरत ही रत्नपुर के लिये प्रस्थान करता है। अन्त में दोनों का विवाह हो जाता है। रयणसेहरीकहा विप्रलंभ और संयोग का एक सरस आख्यान है। रत्नपुर का रत्नशेखर
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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