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________________ छठा अध्याय प्राकृत कथा-साहित्य (ईसवी सन की ४थी शताब्दी से १७वीं शताब्दी तक) कथाओं का महत्व कहानी की कला अत्यंत प्राचीन काल से चली आती है। हर देश की अपनी-अपनी लोककथायें होती हैं और जो देश लोककथाओं से जितना ही समृद्ध है, उतना ही वह सभ्य और सुसंस्कृत माना जाता है। हमारे देश का कथा-साहित्य काफी संपन्न है। इस साहित्य में अनेकानेक कथायें, वार्तायें, आख्यान, दृष्टांत, उपमा, उदाहरण आदि मिलते हैं जो शिक्षाप्रद होने के साथ-साथ प्रेरणादायक और मनोरंजक भी हैं। ऋग्वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, महाभारत, रामायण आदि में कितने ही बोधप्रद और मनोरंजक कथानक हैं । बौद्धों की जातककथायें कथा-साहित्य का अनुपम भंडार है। पैशाची भाषा में लिखी हुई गुणाढ्य की बडुकहा (बृहत्कथा) कहानियों का अक्षय कोष ही था। . जैन विद्वान् पूर्णभद्रसूरि का संस्कृत में लिखा हुआ पंचतंत्र तो इतना लोकप्रिय हुआ कि आगे चलकर पाठक यही भूल गये कि वह किसी जैन विद्वान् की रचना हो सकती है। वस्तुतः बिना पढ़े-लिखे अथवा कम पढ़े-लिखे तथा बालक और अज्ञ लोगों को बोध देने के लिये कहानी सर्वोत्कृष्ट साधन है और वह भी यदि उन्ही की भाषा में सुनाई जाये | आगम-साहित्य में कथायें प्राचीन जैन आगमों में कथा-साहित्य की दृष्टि से नायाधम्मकहाओ का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ उदाहरण, दृष्टांत, उपमा, रूपक, संवाद और लोकप्रचलित कथा-कहानियों द्वारा
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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