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________________ ३५४ प्राकृत साहित्य का इतिहास किया गया है। मथुरा के कुसत्थल, महाथल आदि पाँच स्थलों और वृन्दावन, भंडीरवन, मधुवन आदि बारह वनों के नाम यहाँ गिनाये हैं । विक्रम संवत् ८२६ में श्री बप्पभट्टिसूरि ने मथुरा में श्री वीरबिंब की स्थापना की। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने यहाँ के देवनिर्मित स्तूप में देवता की आराधना कर दीमकों से खाये हुए त्रुटित महानिशीथसूत्र को ठीक किया (संधिअं)। अश्वावबोधतीर्थकल्प में सउलिआविहार (शकुनिकाविहार) नामक प्रसिद्ध तीर्थ का उल्लेख है। सत्यपुरकल्प में विक्रम संवत् १३५६ में अलाउद्दीन सुलतान के छोटे भाई उल्लूखाँ का माधव मन्त्री से प्रेरित हो दिल्ली से गुजराज के लिए प्रस्थान करने का उल्लेख है। अपापाबृहत्कल्प में बताया है कि महावीर ने साधु-जीवन में ४२ चातुर्मास निम्नप्रकार से व्यतीत किये१ अस्थिग्राम में,३चंपा और पृष्ठचंपा में,१२वैशाली और वाणियग्राम में,१४ नालंदा और राजगृह में, ६ मिथिला में,२ भदिया में, १ आलभिया में, १ पणियभूमि में, और १ श्रावस्ती में, अंतिम चातुर्मास उन्होंने मध्यमपावा में हथिसाल राजा की शुल्कशाला में व्यतीत किया । यहाँ पालग, नंद, मौर्यवंश, पुष्यमित्र, बलमित्र-भानुमित्र, नरवाहन, गर्दभिल्ल, शक और विक्रमादित्य राजाओं का काल बताया गया है। अणहिलपुरस्थित अरिष्टनेमिकल्प में चाउक्कड, चालुक्य आदि वंशों के राजाओं के नाम गिनाये हैं। तत्पश्चात् गुजरात में अलाउद्दीन सुलतान का राज्य स्थापित हुआ। कपर्दियक्षकल्प में कवडियक्ष की उत्पत्ति बताई है। श्रावस्ती नगरी महेठि के नाम से कही जाती थी। वाराणसीनगरीकल्प में मणिकर्णिका घाट का उल्लेख है जहाँ ऋषि लोग पंचाग्नि तप किया करते थे । यहाँ धातुवाद, रसवाद, खन्यवाद, मंत्र और विद्या में पंडित तथा शब्दानुशासन, तर्क, नाटक, अलंकार, ज्योतिष, चूडामणि, निमित्तशास्त्र, साहित्य आदि में निपुण लोग रसिकों के मन आनन्दित किया करते थे। देववाराणसी में विश्वनाथ का मंदिर था। राजधानीवाराणसी
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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