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________________ ३३८ प्राकृत साहित्य का इतिहास कर्मग्रन्थ में ८६ गाथायें हैं, इनमें जीवस्थान, मार्गणास्थान, गुणस्थान, भाव और संख्या इन पाँच विषयों का विस्तृत विवेचन है। पाँचवें कर्मग्रन्थ' में १०० गाथाएँ हैं। इनमें पहले कर्मग्रन्थ में वर्णित कर्मप्रकृतियों में से कौन सी प्रकृतियाँ ध्रुवबंधिनी, अध्रुवबंधिनी, ध्रुवोदया, अध्रुवोदया, ध्रुवसत्ताका, अध्रुवसत्ताका, सर्वदेशघाती, अधाती, पुण्यप्रकृति, पापप्रकृति, परावर्तमानप्रकृति, और अपरावर्तमानप्रकृति होती हैं, इसका निरूपण है। ___ छठे कर्मग्रन्थ में ७० ( या ७२) गाथायें हैं | इसके प्रणेता का नाम अज्ञात है। आचार्य मलयगिरि ने इस पर टीका लिखी है। इसमें कर्मों के बन्ध, उदय, सत्ता, और प्रकृतिस्थान के स्वरूप का प्रतिपादन है। योगविशिका इसके रचयिता हरिभद्रसूरि हैं। इस पर यशोविजयगणि ने विवरण प्रस्तुत किया है। यहाँ २० गाथाओं में योगशुद्धि का विवेचन करते हुए स्थान, ऊर्ण (शब्द ), अर्थ, आलंबन, रहित (निर्विकल्प चिन्मात्रसमाधि) के भेद से पाँच प्रकार का योग बताया गया है। १. आत्मानन्द जैनग्रंथ रत्नमाला में ईसवी सन् १९४० में प्रकाशित । इसी जिल्द में चन्द्रर्षि महत्तरकृत सित्तरी (सप्ततिकाप्रकरण ) भी है। श्वेताम्बरों के छह कर्मग्रन्थों और दिगम्बरों के कर्मसिद्धांतविषयक ग्रन्थों की तुलनात्मक सूची भी यहाँ प्रस्तुत की गई है। पाँच कर्मग्रन्थों का अंग्रेजी में संक्षिप्त परिचय 'द डॉक्ट्रीन ऑव कर्मन इन जैन फिलासफी' (डॉक्टर हेल्मुथ फॉन ग्लाज़नेप की जर्मन पुस्तक का अनुवाद) की भूमिका में दिया है। २. राजनगर (अहमदाबाद) की श्री जैनग्रंथ प्रकाशक सभा की ओर से भाषारहस्यप्रकरण के साथ विक्रम संवत् १९९७ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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