SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नव्यकर्मग्रन्थ ३३७ चौथे कर्मग्रंथ के ऊपर रामदेव ने चूर्णी लिखी है। पाँचवें कर्मअन्थ पर तीन भाष्य हैं। इनमें दो अज्ञातकर्तृक हैं और अप्रकाशित हैं। पाँचवें कर्मग्रन्थ शतक-बृहत्भाष्य के कर्ता चक्रेश्वर हैं। इनके ऊपर दो चूर्णियाँ हैं। एक के कर्ता चन्द्रर्षिमहत्तर और दूसरी के अज्ञात हैं। छठे कर्मग्रन्थ पर अभयदेव सूरि ने भाष्य लिखा है। विक्रम संवत् १४४६ (ईसवी सन् १३६२) में मेरुतुंग ने इस पर वृत्ति लिखी है। इस कर्मग्रन्थ पर एक और अज्ञातकर्तृक भाष्य तथा चूर्णी उपलब्ध है। नव्य कर्मग्रन्थ तपागच्छीय जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य तथा सुदंसणाचरिय, भाष्यत्रय, सिद्धपंचाशिका, श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति आदि के कर्ता देवेन्द्रसूरि (स्वर्गवास विक्रम संवत् १३२७= ईसवी सन् १२७०) ने कर्मविपाक, कर्मस्तव, बन्धस्वामित्व, षडशीति और शतक नाम के पाँच कर्मग्रन्थों की रचना की है। इन पर उनका स्वोपज्ञ विवरण भी है। प्राचीन कर्मग्रंथों को आधार मानकर इनकी रचना की गई है, इसलिये इन्हें नव्य कर्मग्रंथ कहा जाता है। पहले कर्मग्रंथ में ६० गाथायें हैं जिनमें ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्म, उनके भेद-प्रभेद, और उनके विपाक का दृष्टांतपूर्वक प्रतिपादन किया गया है। दूसरे कर्मग्रन्थ में ३४ गाथायें हैं। यहाँ १४ गुणस्थानों का स्वरूप और इन गुणस्थानों में कर्मप्रकृतियों के बन्ध, उदय, उदीरणा और सत्ता का प्ररूपण है। तीसरे कर्मग्रंथ में २४ गाथायें हैं, इनमें मार्गणा के आश्रय से जीवों के कर्मप्रकृतिविषयक बंध-स्वामित्व का वर्णन है। चौथे १. वीर समाज ग्रंथरत्न द्वारा वि० सं० १९८० में प्रकाशित । २. जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर से प्रकाशित । ३. वि० सं० १९९९ में प्रकाशित । ४. आत्मानन्द जैनग्रंथ रत्नमाला में ईसवी सन् १९३४ में प्रकाशित । २२ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy