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________________ ३३२ प्राकृत साहित्य का इतिहास धम्मसंगहणी (धर्मसंग्रहणी) हरिभद्रसूरि का यह दार्शनिक ग्रंथ है। इसके पूर्वार्ध में पुरुषवादिमतपरीक्षा, अनादिनिधनत्व, अमूर्तत्व, परिणामित्व और ज्ञायकत्व, तथा उत्तरार्ध भाग में कर्तृत्व, भोक्तृत्व और सर्वज्ञसिद्धि का प्ररूपण है। प्रवचनपरीक्षा प्रवचनपरीक्षा एक खंडनात्मक ग्रंथ है, इसका दूसरा नाम है कुपक्षकौशिकसहस्रकिरण | इसे कुमतिमतकुद्दाल भी कहा गया है। तपागच्छ के धर्मसागर उपाध्याय ने विक्रम संवत् १६२६ (ईसवी सन् १५७२ ) में अपने ही गच्छ को सत्य और बाकी को असत्य सिद्ध करने के लिये इस ग्रंथ की सवृत्तिक रचना की थी। विक्रम संवत् १६१७ (ईसवी सन् १५६०) में पाटण में खरतरगच्छ और तपागच्छ के अनुयायियों में इस विषय पर विवाद हुआ कि 'अभयदेवसूरि खरतरगच्छ के नहीं थे। आगे चलकर तपागच्छ के नायक विजयदानसूरि ने प्रवचनपरीक्षा को जल की शरण में पहुँचा कर इस वाद-विवाद को रोक दिया | धर्मसागरसूरि ने चतुर्विध संघ के समक्ष क्षमा याचना की। प्रवचनसारपरीक्षा के पूर्व और उत्तर नाम के दो भाग हैं । इनमें तीर्थस्वरूप, दिगम्बरनिराकरण, पौर्णिमीयकमतनिराकरण, खरतर, आंचलिक, सार्धपौर्णिमीयकनिराकरण, आगमिकमतनिराकरण, लुम्पाकमतनिराकरण, कटुकमतनिरा १. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला की ओर से सन् १९१६ और १९१८ में दो भागों में प्रकाशित । २. ऋषभदेवजीकेशरीमल संस्था, रतलाम की ओर से सन् १९३७ में प्रकाशित । ३. धर्मसागर उपाध्याय के अन्य ग्रंथों के लिए देखिये मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ५८२, ३ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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