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________________ पाँचवाँ अध्याय आगमोत्तरकालीन जैनधर्मसंबंधी साहित्य (ईसवी सन् की ५वीं शताब्दी से लेकर १०वीं शताब्दी तक) __ आगम-साहित्य के अतिरिक्त जैन विद्वानों ने जैन-तत्वज्ञान, आचार-विचार, क्रियाकांड, तीर्थ, पट्टावलि, ऐतिहासिक-प्रबन्ध आदि पर भी प्राकृत में साहित्य की रचना की है। यह उत्तरकालीन साहित्य किसी ग्रंथ की टीका आदि के रूप में न लिखा जाकर प्रायः स्वतंत्र रूप से ही लिखा गया । यद्यपि आगमों की परम्परा के आधार से ही इस साहित्य का सर्जन हुआ, फिर भी आगम-साहित्य की अपेक्षा यह अधिक व्यवस्थित और तार्किकता लिए हुए था। प्रायः किसी एक विषय को लेकर ही इस साहित्य की रचना की गई। प्रकरण-ग्रन्थ तो उपयोगिता की दृष्टि से बहुत ही संक्षेप में लिखे गये। पिछले अध्याय में दिगम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों की कृतियों का परिचय दिया गया है, यहाँ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों की धार्मिक कृतियों का परिचय दिया जाता है। (क) सामान्य-ग्रन्थ विशेषावश्यकभाष्य विशेषावश्यक को ८४ आगमों में गिना गया है, इससे इस ग्रंथ के महत्व का सहज ही अनुमान किया जा सकता है।' १. इस ग्रन्थ की अति प्राचीन ताडपत्रीय प्रति जैसलमेर के भंडार से उपलब्ध हुई है। यह प्रति वि० सं० की दसवीं शताब्दी में लिखी गई थी। मुनि पुण्यविजय जी की कृपा से यह मुझे देखने को मिली है। यह ग्रंथ मलधारि हेमचन्द्रसूरि की टीका सहित यशोविजय जैन
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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