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________________ ३१५ द्रव्यसंग्रह व्याख्यान माधवचन्द्र विद्य ने संस्कृत गद्य में किया है, इसी से इसे लब्धिसार क्षपणसार कहा जाता है। द्रव्यसंग्रह द्रव्यसंग्रह को भी कोई नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्ती की रचना मानते हैं । इसमें कुल ५८ गाथायें हैं जिनमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा कर्म, तत्व, ध्यान आदि की चर्चा है। इस पर ब्रह्मदेव की संस्कृत में बृहत् टीका है।' पंडित द्यानतराय ने द्रव्यसंग्रह का छन्दोनुबद्ध हिन्दी अनुवाद किया है। ___ जंबुद्दीवपण्णत्तिसंगह यह करणानुयोग का ग्रन्थ है जिसके कर्ता पद्मनन्दिमुनि हैं ।२ पद्मनन्दि ने अपने आपको गुणगणकलित, त्रिदंडरहित, त्रिशल्यपरिशुद्ध आदि बताते हुए अपने को बलनन्दि का शिष्य कहा है। बलनन्दि पञ्चाचारपरिपालक आचार्य वीरनन्दि के शिष्य थे। वारा नगर में इस ग्रन्थ की रचना हुई; यह नगर पारियत्त (पारियात्र) देश के अन्तर्गत था । सिंहसूरि के लोकविभाग में जम्बुद्दीवपण्णत्ति का उल्लेख मिलता है, इससे • इस ग्रंथ का रचना-काल ११वीं शताब्दी के आसपास होने का अनुमान किया जाता है। जम्बुद्दीपपण्णत्ति का बहुत सा विषय १. यह सेक्रेड बुक्स ऑव द जैन्स सीरीज़ में सन् १९१७ में आरा से प्रकाशित हुई है। शरच्चन्द्र घोपाल ने मूल ग्रन्थ का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। २. डॉक्टर ए० एन० उपाध्ये और डॉक्टर हीरालाल जैन द्वारा संपादित; जीवराज जैन ग्रन्थमाला, शोलापुर से सन् १९५८ में प्रकाशित । इस ग्रन्थ की प्रस्तावना में 'तिलोयपण्णत्ति का गणित' नाम का एक महत्वपूर्ण निवन्ध दिया है। ३. इसकी पहचान कोटा के बारा कस्बे से की जाती है। देखिए पण्डित नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ २५९ ।।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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