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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास त्रिलोकसार त्रिलोकसार करणानुयोग का एक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है।' गोम्मटसार की भाँति यह भी एक संग्रह-ग्रंथ है। इसमें बहुत सी परम्परागत प्राचीन गाथा ग्रंथ के अंग के रूप में सम्मिलित कर ली गई हैं। चामुंडराय के प्रतिबोध के लिए यह लिखा गया था। माधवचन्द्र विद्य ने इस पर संस्कृत में टीका लिखी है। मूल ग्रन्थ में भी इनकी बनाई हुई कई गाथायें शामिल हो गई हैं। इसमें कुल मिलाकर १०१८ गाथायें हैं जिनमें लोकसामान्य, भवन, व्यंतरलोक, ज्योतिर्लोक, वैमानिकलोक, और नरकतिर्यग्लोक नामक अधिकारों में तीन लोकों का वर्णन किया गया है। लब्धिसार इस ग्रन्थ में विस्तारसहित कर्मों से मुक्त होने का उपाय बताया है । क्षपणासार भी इसी में गर्भित है। राजा चामुंडराय के निमित्त से इस ग्रंथ की रचना की गई है। कषायप्राभृत नामक जयधवल सिद्धांत के १५ अधिकारों में से पश्चिमस्कंध नाम के १५वे अधिकार के आधार से यह लिखा गया है। कर्मों में मोहनीय कर्म सबसे अधिक बलवान है जिसे मिथ्यात्व कर्म । भी कहा है। लब्धिसार में इस कर्म से मुक्त होने के लिए पाँच लब्धियों का वर्णन है। इनमें करणलब्धि मुख्य है जिससे मिथ्यात्व कम छूट जाने से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। लब्धिसार में दर्शनलब्धि, चारित्रलब्धि, और क्षायिकचारित्र नाम के तीन अधिकार हैं। उपशमचारित्र अधिकार तक ही केशववर्णी ने टीका लिखी है। इसके आधार से पंडित टोडरमलजी ने भाषाटीका की रचना की है। क्षपणाधिकार की गाथाओं का १. गांधी नाथारंग जी द्वारा सन् १९११ में बंबई से प्रकाशित । २. रायचन्द्र जैन शास्त्रामाला में ईसवी सन् १९१६ में बंबई से प्रकाशित।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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