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________________ ૨૮૮ प्राकृत साहित्य का इतिहास । षट्खंडागम की पन्द्रहवीं पुस्तक में निबंधन, प्रक्रम, उपक्रम और उदय नाम के चार अनुयोगद्वारों का प्ररूपण है। अंग्रायणी पूर्व के १४ अधिकारों में पाँचवाँ चयनलब्धि नाम का अधिकार है। इसमें २० प्राभृत हैं, चतुर्थ प्राभृत का नाम कर्मप्रकृतिप्राभृत है। इस प्राभृत में कृति, वेदना, स्पर्श, कर्म, प्रकृति, बंधन, निबंधन, प्रक्रम, उपक्रम, उदय आदि २४ अधिकार हैं। इनमें से वेदना नामक चतुर्थ खंड में कृति (नौवीं पुस्तक), और वेदना ( दसवीं-ग्यारहवीं और बारहवीं पुस्तक) तथा वर्गणा नाम के पाँचवें खंड में स्पर्श, कर्म और प्रकृति (तेरहवीं पुस्तक) अधिकारों का प्ररूपण किया है। बन्धन नाम का अनुयोगद्वार बन्ध, बन्धनीय, बन्धक और बन्धविधान नामक चार अवान्तर अनुयोगद्वारों में विभक्त है। इनमें से बन्ध और बन्धनीय अधिकारों की प्ररूपणा १४ वीं पुस्तक में की गई है। इस प्रकार पुष्पदन्त और भूतबलिकृत मूल षट्खंडागम में २४अनुयोगद्वारों में से प्रथम छह अनुयोगद्वारों के विषय का विवरण है। शेष निबंधन आदि १८ अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा मूल षट्खंडागम में नहीं है। इनकी प्ररूपणा वीरसेन ने अपनी धवला टीका में की है। इन १८ अनुयोगद्वारों में से निबंधन, प्रक्रम, उपक्रम और उदय नाम के प्रथम चार अनुयोगद्वारों की प्ररूपणा पन्द्रहवीं पुस्तक में । की गई है। षट्खंडागम की सोलहवीं पुस्तक में मोक्ष, संक्रम, लेश्या, लेश्याकर्म, लेश्यापरिणाम, सातासात, दीर्घ-हस्व, भवधारणीय, पुद्गलात्त, निधत्त-अनिधत्त, निकाचित-अनिकाचित, कर्मस्थिति, पश्चिमस्कंध और अल्पबहुत्व नामक शेष १४ अनुयोगद्वारों का परिचय कराया गया है। इस प्रकार सोलह पुस्तकों में षटखण्डागम और उसकी धवला टीका समाप्त होती है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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