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________________ पखंडागम का परिचय . २८७ स्वामित्वविधान, वेदनावेदनाविधान, वेदनागतिविधान, वेदनाअनन्तरविधान, वेदनासन्निकर्षविधान, वेदनापरिमाणविधान वेदनाभागाभागविधान और वेदनाअल्पबहुत्वविधान | इनमें क्रमशः ३१४, १६, १५, ५८, १२, ११, ३२०, ५३, २० और २६ सूत्र हैं। तेरहवीं पुस्तक में वर्गणा नामका पाँचवाँ खंड आरम्भ होता है; इसमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति नामक तीन अनुयोगद्वारों का प्रतिपादन है। स्पर्श अनुयोगद्वार में स्पर्शनिक्षेप, स्पर्शनयविभाषणता, स्पर्शनामविधान, स्पर्शद्रव्यविधान आदि १६ अधिकारों द्वारा स्पर्श का विचार किया गया है। कर्म अनुयोगद्वार में नामकर्म, स्थापनाकर्म, द्रव्यकर्म, प्रयोगकर्म, समवदानकर्म, अधःकर्म, ईर्यापथकर्म, तपःकर्म, क्रियाकर्म और भावकर्म का प्ररूपण किया है। प्रकृतिअनुयोगद्वार में प्रकृतिनिक्षेप आदि सोलह अनुयोगद्वारों का विवेचन है । इन तीनों अनुयोगद्वारों में क्रमशः ३३, ३१ और १४२ सूत्र हैं। प्रकृतिअनुयोगद्वार में भाषाविषयक ऊहापोह करते हुए कीर, पारसीक, सिंघल और बर्बरीक आदि देशवासियों की भाषा को कुभाषा कहा है। फिर तीन कुरु, तीन लाढ़, तीन महाराष्ट्र, तीन मालव, तीन गौड़ और तीन .. मगध देश की भाषाओं के भेद से अठारह प्रकार की भाषाएँ बताई गई हैं। श्रुतज्ञान का स्वरूप बताते हुए द्वादशांग वाणी की मुख्यता से उसके संख्यात भेद किये हैं। फिर अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान का स्वरूप प्रतिपादित है। षटखंडागम की चौदहवीं पुस्तक में वर्गणा नाम के पाँचवें खंड में ७६८ सूत्रों में बंधन अनुयोगद्वार का वर्णन है। इसकी टीका में धवलाकार ने कर्मबंध का अत्यंत सूक्ष्म विवेचन किया है। बंधन के चार भेद हैं--बन्ध, बन्धक, बन्धनीय और बंधविधान | इस अनुयोगद्वार में बंध और बंधनीय का विशेष विचार किया गया है। जीव से पृथग्भूत कर्म और नोकर्म स्कंधों को बंधनीय कहते हैं।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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