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________________ २५६ प्राकृत साहित्य का इतिहास जिनदासगणि की प्रस्तुत चूर्णी में आवश्यकचूर्णी का उल्लेख मिलता है इससे पता लगता है कि आवश्यकचूर्णी के पश्चात् इसकी रचना हुई। यहाँ भी शब्दों की बड़ी विचित्र व्युत्पत्तियां दी गई हैं । द्रुम आदि शब्दों की व्युत्पत्ति देखिये दुमा नाम भूमीय आगासे य दोसु माया दुमा । पादेहिं पिबंतीति पादपाः, पाएसु वा पालीज्जंतीति पादपा, पादा मूलं भण्णति | रु त्ति पुहवी ख ति आगासं तेसु-दोसु वि जहा ठिया तेण रुक्खा, अहवा रुः पुढवी तं खायंतीति रुक्खो। __ प्रवचन का उड्डाह होने पर किस प्रकार प्रवचन की रक्षा करे, इसे समझाने के लिये हिंगुसिव नामक वानमन्तर की कथा दी है___एगम्मि नगरे एगो मालागारो सण्णाइओ पुप्फे घेत्तण वीहीए एइ । सो अतीव वच्चइओ | ताहे सो सिग्धं वोसिरिऊण सा पुप्फचितिया तस्सेव उवरि पल्लत्थिया । ताहे लोगो पुच्छइकिमेयं जेणेत्थं पुप्फाणि छड्डेसि ? ताहे सो भणइ-अहं ओलोडिओ । एत्थं हिंगुसिवो णाम | -किसी नगर में कोई माली पुष्प तोड़ कर रास्ते में जा रहा था | इतने में उसे टट्टी की हाजत हुई। उसने जल्दी-जल्दी टट्टी फिर कर उसे पुष्पों से ढक दिया। लोगों ने पूछा-यहाँ ये पुष्प क्यों डाल रक्खे हैं ? माली ने उत्तर दिया-मुझे प्रेतबाधा हो गई है, यह हिंगुसिव नामका व्यन्तर है। __इसी प्रकार यदि कभी प्रमादवश प्रवचन की हँसी हो जाय तो उसकी रक्षा करे। एक तच्चन्निक (बौद्ध ) साधु का चित्रण देखिये तच्चण्णियो मच्छे मारतो रण्णा दि8ो । ताहे रण्णा भणिओकिं मच्छे मारेसि ? तच्चण्णिओ भणइ-अवीलक्कं न सिक्केमि पातुं। १. विलंक = व्यञ्जन । . .
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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