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________________ २४० प्राकृत साहित्य का इतिहास आसत्था । इओ य अदूरेण सत्थो वच्चति । दिट्ठा या सत्थवाहेणं, गहिया, संभोतिया रूववती महिला कया | कालेण भातियागमो, दिला, अब्भुटिया य दिण्णा भिक्खा | तहावि साधवो णिरक्खंता अच्छं, तीए भणियं-किं णिरक्खह ? ते भणंति-अम्ह भगिणीए सारिक्खा हि, किंतु सा मता, अम्हेहिं चेव परिट्ठविया, अण्णहा ण पत्तियंता । तीए भणियंपत्तियह,अहं चिय सा|सव्वं कहेति । वयपरिणया य तेहिं दिक्खिया। -अर्धभरत में वाराणसी नगरी में वासुदेव का बड़ा भाई जराकुमार का पुत्र जितशत्रु राज्य करता था। उसके ससअ और भसअ नामके दो पुत्र और सुकुमालिया नामकी एक कन्या थी। महामारी आदि के कारण समस्त कुल के नष्ट हो जाने पर तीनों ने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। सुकुमालिया बड़ी होकर युवती हो गई । वह अत्यन्त सुकुमार और रूपवती थी। जब वह भिक्षा के लिये जाती तो बहुत से तरुण उसका पीछा करते। इस प्रकार अपने रूप के कारण वह अपने ही लिये बाधा हो गई। तरुण उपाश्रय में घुस आते । ऐसी दशा में सुकुमालिया की रक्षा के लिये गणिनी ने गुरु से निवेदन किया | गुरु ने ससअ और भसअ को आदेश दिया कि वे अपनी बहन की रक्षा करें। वे उसे लेकर एक अलग उपाश्रय में रहने लगे, दोनों भाई बड़े बलवान् और सहस्रयोधी थे | उनमें से एक भिक्षा के लिए जाता तो दूसरा सुकुमालिया की रक्षा करता | जो तरुण छेड़खानी करने के लिए वहाँ आते उन्हें वह मार-पीटकर भगा देता | इस प्रकार उन दोनों ने बहुत सों को ठीक किया। उधर अपने भाइयों पर अनुकंपा कर सुकुमालिया ने अनशन स्वीकार किया, और कुछ ही दिनों में क्षीण हो जाने के कारण वह अचेतन हो गई | भाइयों ने समझा कि वह मर गई है। एक ने उसे उठाया और दूसरे ने उसके उपकरण लिए । इस समय पुरुष के स्पर्श से और रात्रि में शीतल वायु के लगने से उसकी मूर्छा टूटी लेकिन फिर भी वह चुपचाप रही। दोनों भाई उसे एक स्थान में रख कर गुरु के पास चले गये । इस
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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