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________________ निशीथविशेषचूर्णी २३९ निशीथविशेषचूर्णी निशीथ के ऊपर लिखी हुई चूर्णी को विसेसचुण्णि (विशेषचूर्णी)' कहा गया है। इसके कर्ता जिनदासगणि महत्तर हैं । निशीथचूणि अभी तक अनुपलब्ध है। इसमें पिंडनियुक्ति और ओघनियुक्ति का उल्लेख मिलता है जिससे पता लगता है कि यह चूर्णी इन दोनों नियुक्तियों के बाद लिखी गई है। साधुओं के आचार-विचार से संबंध रखनेवाले अपवादसंबंधी अनेक नियमों का यहाँ वर्णन है । सुकुमालिया की कथा पढ़िये इहेव अड्ढभरहे वाराणसीणगरीए वासुदेवस्स जेट्ठभाओ जरकुमारस्स पुत्तो जियसत्तु राया ! तस्स दुवे पुत्ता ससओ भसओ य,धूया य सुकुमालिया।असिवेण सव्वंमि कुलवंसे पहीणे तिण्णिवि कुमारगा पव्वतिता | सा य सुकुमालिया जोव्वणं पत्ता | अतीव सुकुमाला रूपवती य । जतो भिक्खादिवियारे वच्चइ ततो तरुणजुआणा पिट्ठओ वच्चंति । एवं सा रूवदोसेण सपञ्चवाया जाया । ___ तं णिमित्तं तन्णेहिं आइण्णे उवस्सगे सेसिगाण रक्खणट्ठा गणिणी गुरूणं कहेति । ताहे गुरुणा ते सस-भसगा भणियासंरक्खह एवं भगिणिं । ते घेत्तुं वीसुं उबस्सए ठिया । ते य बलवं सहस्सजोहिणो। ताणेगो भिक्खं हिंडति एगो तं पयत्तेण रक्खति । जे तरुणा अहिवडंति ते हयविहए काउं घाडेति । एवं तेहिं बहुलोगो विराधितो। भायणुकंपाए सुकुमालिया अणसणं पव्वज्जति । बहुदिणखीणा सा मोहं गता । तेहिं णायं कालगय त्ति | ताहे तं एगो गेण्हति, बितिओ उपकरणं गेहति । ततो सा पुरिसफासेण रातो य सीयलवातेण णिज्जंती अप्पातिता सचेयणा जाया। तहावि तुहिक्का ठिता, तेहि परिट्ठविया, ते गया गुरुसगासं। सा वि १. विजय प्रेम सूरीश्वर जी ने वि० सं० १९९५ में इसकी कई भागों में साइक्लोस्टाइल प्रति तैयार की थी। अभी हाल में उपाध्याय अमरमुनि और मुनि श्री कन्हैयालाल 'कमल' ने इसे चार भागों में सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा से प्रकाशित किया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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