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________________ बृहत्कल्पभाष्य ૨૨૭ पांच प्रकार के वस्त्रों का उल्लेख है। दूष्यों में कोयवि (रुई से भरा वस्त्र ), प्रावारक (कंबल), दाढिगालि, पूरिका, विरलिका, उपधान, तूली', आलिंगनिका, गंडोपधान और मसूरक' का उल्लेख है। तथा एकपुट, सकलकृत्स्न, द्विपुट, खल्लक, खपुसा, वागुरा, कोशक, जंघा, अर्धजंघा नामक जूतों का उल्लेख है । दक्षिणापथ के दो रूपकों का मूल्य कांचीपुर के एक नेलक के बराबर होता था, और कांचीपुर के दो रूपक पाटलिपुत्र के एक रूपक के बराबर होते थे। थूणा आदि देशों में किनारी ( दशा) कटे हुए वस्त्र धारण करने, तथा जिनकल्पी साधुओं को पात्र आदि बारह प्रकार की उपधि रखने का विधान है। शील और लज्जा को स्त्रियों का भूपण कहा हैण भूसणं भूसयते सरीरं विभूसणं सीलहिरी य इथिए । गिरा हि संखारजुया वि संसती, अपेसला होइ असाहुवादिणी॥ -हार आदि आभूषणों से स्त्री का शरीर विभूषित नहीं होता, उसका भूषण तो शील और लज्जा ही है। सभा में संस्कारयुत असाधुवादिनी वाणी प्रशस्त नहीं कही जाती। विधिपूर्वक गोचरी के लिए भ्रमण करती हुई यदि कोई संयती किसी गृहस्थ द्वारा घर्षित कर दी जाये तो उसकी रक्षा करने का विधान है। यहाँ पुरुष के संवास के विना भी गर्भ की संभावना बताई है। स्त्री को हर दशा में सचेल रहने का विधान है। उज्जैनी, राजगृह और तोसलिनगर में कुत्रिकापण (बड़ी दूकानें जहाँ हर वस्तु मिलती है) होने का उल्लेख है। यदि वस्त्र का परिभाजन करते समय साधुओं में परस्पर १. दीघनिकाय ( १, पृ० ७ ) में तूलिक का उल्लेख है। २. महावग्ग (५. १०.३ ) और चुल्लवग्ग ( ६. २.४) में विविध तकियों का उल्लेख मिलता है। ३. जैनागमों में वर्णित सिक्कों के संबंध में देखिए डॉक्टर उमाकान्त शाह का राजेन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ, १९५७ में लेख ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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