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________________ २२६ प्राकृत साहित्य का इतिहास उपकरणों का उल्लेख है। तीन सिंहों के घातक कृतकरण श्रमण का उदाहरण दिया है। सार्थवाह तथा संखडि ( भोज) का वर्णन है। शैलपुर में ऋपितड़ाग, भड़ौंच में कुंडलमेण्ठ व्यन्तर की यात्रा तथा प्रभास, अर्बुदाचल, प्राचीनवाह आदि स्थानों का उल्लेख है। संखडी के प्रकार बताये गये हैं। उज्जैनी का राजा संप्रति आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ति (वीर निर्वाण के २६१ वर्ष बाद स्वर्गस्थ) का समकालीन था, उसके समय से साढ़े पञ्चीस जनपदों की आर्यक्षेत्रों में गणना की जाने लगी।' चतुर्थ भाग में द्वितीय उद्देश के १-२५ और तृतीय उद्देश के १-३१ सूत्र हैं। इन पर ३२८०-४८७६ गाथाओं का भाष्य है। इनमें उपाश्रय, सागारिकपारिहारिक, आहृतिकानिहृतिका, अंशिका, पूज्यभक्तोपकरण, उपधि, रजोहरण, उपाश्रयप्रवेश, चर्म, कृत्स्नाकृत्स्न वस्त्र, भिन्नाभिन्न वस्त्र, अवग्रहानन्तक अवग्रहपट्टक, निश्रा, त्रिकृत्स्न, समवसरण, यथारत्नाधिकवस्त्रपरिभाजन, यधारत्नाधिकशय्यासंस्तारकपरिभाजन, कृतिकर्म, अन्तरगृहस्थानादि, अन्तरगृहाख्यानादि, शय्यासंस्तारक, अवग्रहप्रकृत, सेनाप्रकृत और अवग्रहप्रमाण का विवेचन है । सदा जागृत रहने का उपदेश दिया है जागरह नरा! णिच्चं, जागरमाणस्स वड्ढते बुद्धी। जो सुवति ण सो धण्णो, जो जग्गति सो सया घण्णो । -हे मनुष्यो ! सदा जागृत रहो। जागृत मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है । जो जागता है वह सदा धन्य है । अग्नि, पचन, व्याघरण, पणित और भंडशालाओं का उल्लेख है। जांगमिक, .भांगिक, सानक पोतक और तिरीट नाम के १. देखिये अध्याय दूसरा, पृ० ५२ । २. मिलाइये-जागरन्ता सुणाथे तं ये सुत्ता ते पवुज्झथ । सुत्ता जागरितं सेय्यो नस्थि जागरतो भयं ॥ दतिवत्तक. जागरिय सत्त ४७ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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