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________________ निशीथभाष्य २१३ कमंडल की टोंटी में से मैं तो बाहर निकल आया, लेकिन हाथी की पूँछ टोंटी में अटकी रह गई। रास्ते में गंगा नदी पड़ी जिसे पार करके मैं अपने स्वामी के घर पहुँचा | वहाँ से आप लोगों के पास आया हूँ ।” __खंडपाणा ने अपनी कहानी सुनाई-"मैं एक धोबी की लड़की थी। एक बार मैं अपने पिता जी के साथ कपड़ों की एक बड़ी गाड़ी भर कर नदी के किनारे कपड़े धोने गई । जब कपड़े धूप में सूख रहे थे तो जोर की हवा चली और सब कपड़े उड़ गये। यह देखकर राजा के भय से गोह का रूप धारण कर मैं रात्रि के समय नगर के बगीचे में गई । वहाँ मैं आम की लता बन गई। तत्पश्चात् पटह का शब्द सुनकर मैंने फिर से नया शरीर धारण किया। उधर कपड़ों की गाड़ी की रस्सियाँ ( णाडगवरत्ता) गीदड़ और बकरे खा गये थे । ढूँढते-ढूँढ़ते मेरे पिता जी को भैंसे की पूँछ मिली जिस पर वे रस्सियाँ लिपटी हुई थीं। मेरे कपड़े हवा में उड़ गये थे और मेरे नौकरचाकरों का भी पता नहीं था। उनका पता लगाने के लिये मैं राजा के पास गई। वहाँ से घूमती-घामती यहाँ आई हूँ। तुम लोग मेरे नौकर हो और जो कपड़े तुमने पहन रक्खे हैं वे मेरे हैं।" ___ और भी अनेक सरस लौकिक कथा-कहानियाँ निशीथभाष्य में जहाँ-तहाँ बिखरी पड़ी हैं। साधुओं के आचार-विचार संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रतिपादन यहाँ उपलब्ध होता है। उदाहरण के लिये, प्रायश्चित्तद्वार का वर्णन करते हुए साधु के वास्ते उड्डाह (प्रवचन की हँसी) से बचने के लिये, संयम के हेतु, बोधिक' चोरों से १. ये मालवा की पर्वतश्रेणियों में रहते और उज्जैनी के लोगों को भगाकर ले जाते थे। (विशेषनिशीथचूर्णी १६, पृष्ठ १११० • साइक्लोस्टाइल प्रति )। महाभारत (६, ९, ३९) में भी बोधों का उल्लेख है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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