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________________ २१२ प्राकृत साहित्य का इतिहास बकरी को एक अजगर निगल गया और उस अजगर को एक पक्षी खा गया | पक्षी उड़कर वटवृक्ष के ऊपर जा बैठा। उस पक्षी का एक पाँव नीचे की ओर लटक रहा था | उस वृक्ष के नीचे राजा की सेना ने पड़ाव डाल रक्खा था। सेना का एक हाथी पक्षी के पाँव में अटक गया। पाँव में कुछ अटक जाने से वह पक्षी वहाँ से उड़ने लगा और उसके साथ-साथ हाथी भी उड़ने लगा। यह देखकर किसी शब्दवेधी ने अपने तीर से पक्षी को मार गिराया। राजा ने उसका पेट चिरवाया तो उसमें से बकरी निकली, बकरी में से फूट निकली, और फूट में से सारा गाँव का गाँव निकल पड़ा। अपनी गायें लेकर मैं वहाँ से चला आया ।" सस ने दूसरा आख्यान सुनाया-"मैं किसी खेत में गया। वहाँ एक बहुत बड़ा तिल का झाड़ खड़ा था | मैं जब तिल के झाड़ के पास घूम रहा था तो मुझे एक जंगली हाथी दिखाई दिया | वह मेरे पीछे लग गया | हाथी से पीछा छुड़ाने के लिये मैं उस तिल के झाड़ पर चढ़ गया। हाथी भाड़ के चारों ओर चक्कर काटने लगा जिससे तेल की एक नदी बह निकली। वह हाथी इस नदी में गिर कर मर गया। मैंने उसकी खाल से एक मशक बनाई और उसे तेल से भर लिया। इस मशक को एक वृक्ष पर टाँग कर मैं अपने घर चला आया | अपने लड़के को मैंने यह मशक लाने को कहा | जब वह उसे दिखाई न पड़ी तो वह समूचे वृक्ष को उखाड़ लाया | अपने घर से घूमता-घामता मैं यहाँ आया हूँ।" मूलदेव ने अफ्ना अनुभव सुनाया-"एक बार अपनी जवानी में गंगा को सिर पर धारण करने की इच्छा से छत्र और कमंडल हाथ में ले मैं अपने स्वामी के घर गया । इतने में मैंने देखा कि एक जंगली हाथी मेरे पीछे लग गया है। मैं डर के मारे एक कमंडल में छिप गया। हाथी भी मेरे पीछे-पीछे कमंडल में घुस आया। छह महीने तक वह मेरे पीछे भागता फिरा ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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