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________________ ૨૮૮ प्राकृत साहित्य का इतिहास प्रत्येकबुद्धों के चरित्र दिये हुए हैं। इसमें अनेक अध्ययन पद्य में हैं। इस सूत्र पर नियुक्ति लिखे जाने का उल्लेख है जो आजकल अनुपलब्ध है। नन्दी और अनुयोगदार नन्दी की गणना अनुयोगद्वार के साथ की जाती है। ये दोनों आगम अन्य आगमों की अपेक्षा अर्वाचीन हैं। नन्दी के कतो दूष्यगणि के शिष्य देववाचक हैं । कुछ लोग देववाचक और देवर्धिगणि क्षमाश्रमण को एक ही मानते हैं। लेकिन यह ठीक नहीं है। दोनों की गच्छ परम्परायें भिन्न-भिन्न हैं। जिनदासगणि महत्तर ने इस सूत्र पर चूर्णी तथा हरिभद्र और मलयगिरि ने टीकायें लिखी हैं।' नन्दीसूत्र में ६० पद्यात्मक गाथायें और ५६ सूत्र हैं। आरम्भ की गाथाओं में महावीर, संघ और श्रमणों की स्तुति की गई है। स्थविरावली में भद्रबाहू, स्थूलभद्र, महागिरि, आर्य श्याम, आर्य समुद्र, आर्य मंगु, आय नागहस्ति, स्कंदिल आचार्य, नागार्जुन, भूतदिन्न आदि के नाम मुख्य हैं। प्रथम सूत्र में ज्ञान के पाँच भेद बताये हैं। फिर ज्ञान के भेद-प्रभेदों का विस्तार से कथन है। सम्यक् श्रुत में द्वादशांग गणिपिटक के आचारांग आदि १२ भेद बताये गए हैं। द्वादशांग सर्वज्ञ, सर्वदर्शियों द्वारा भाषित माना है। मिथ्याश्रुत में भारत (महाभारत) ___१. चूर्णी सन् १९२८ में रतलाम से प्रकाशित; हरिभद्र की टीका सहित सन् १९२८ में रतलाम से और मलय गिरि की टीका सहित सन् १९२४ में बम्बई से प्रकाशित । इस आगम की कुछ कथाओं की तुलना कालिपाद मित्र ने इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी (जिल्द १९, नं० ३-४) में प्रकाशित 'सम टेक्स ऑव ऐशिएण्ट इज़राइल, देअर ओरिजिनल्स एण्ड पैरेलल्स' नामक लेख में अन्य कथाओं के साथकी है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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