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________________ 'बंदित्तुसुत्त । वंदित्तुसुत्त इसे श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र भी कहते हैं। इसकी पहली गाथा 'वंदित्तु सव्वसिद्धे' से आरम्भ होती है, इसलिए इसे वंदित्तुसुत्त कहा जाता है। यह सूत्र गणधरों द्वारा रचित कहा गया है। इस पर अकलंक, देवसूरि, पार्श्वसूरि, जिनेश्वरसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, तिलकाचार्य, रबशेखरसूरि आदि आचार्यों ने टीकाएँ लिखी हैं। सबसे प्राचीन विजयसिंह की चूर्णी है जो संवत् ११८३ (सन् ११२६ ) में लिखी गई है। इसिभासिय (ऋषिभाषित ) प्रत्येकबुद्धों द्वारा भाषित होने से इसे ऋषिभाषित कहा है। इसमें नारद, अंगरिसि, वल्कलचीरि, कुम्मापुत्त, महाकासव, मंखलिपुत्त, बाहुक, रामपुत्त, अम्मड, मायंग, वारत्तय, इसिगिरि, अदालय, दीवायण, वेसमण आदि ४५ अध्ययनों में १. पार्श्वसूरि, चन्द्रसूरि और तिलकाचार्य की वृत्तियों सहित विनयभक्ति सुन्दरचरणग्रन्थमाला में वि० सं० १९९७ में प्रकाशित । रत्नशेखरसूरि की वृत्ति का अनुसरण करके किसी आचार्य ने अवचूरि लिखी है जो वन्दनप्रतिक्रमणावचूरि के नाम से देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्वार ग्रन्थमाला में सन् १९५२ में प्रकाशित हुई है। २. ऋषभदेव केशरीमल संस्था, रतलाम द्वारा सन् १९२७ में प्रकाशित। ३. थेरगाथा ( ४ ) में कुम्मापुत्त स्थविर का उल्लेख है। ४. सूत्रकृतांग (३.४-२, ३, ४, पृष्ठ ९४ अ-९५) में रामगुप्त राजर्षि, बाहुक, नारायणमहर्षि, असितदेवल, द्वीपायन, पराशर आदि महापुरुषों को सम्यकचारित्र के पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति बताई है। चउसरण की टीका (६४) में भी अन्यलिंग-सिद्धों में वल्कलचीरी आदि तथा अजिन-सिद्धों में पुंडरीक, गौतम आदि का उल्लेख है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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