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________________ ओहनिनुत्ति की जा सकती है। आखिर तो परिणामों की शुद्धता ही मोक्ष का कारण है। फिरसंजमहेउं देहो धारिजइ सो कओ उ तदभावे ? ' संजमफाइनिमित्तं देहपरिपालणा इट्ठा ।' -संयम पालन के लिये ही देह धारण की जाती है, देह के अभाव में संयम का कहाँ से पालन किया जा सकता है ? इसलिये संयम की वृद्धि के लिये देह का पालन करना उचित है। यदि कोई साधु बीमार हो गया हो तो तीन, पाँच या सात साधु स्वच्छ वस्त्र धारण कर, शकुन देखकर वैद्य के पास गमन करें। यदि वह किसी के फोड़े में नश्तर लगा रहा हो तो उस १. इस विषय को लेकर जैन आचार्यों में काफी विवाद रहा है। विशेषनिशीथचूर्णी में भी यही अभिप्राय व्यक्त किया गया है कि जहाँ तक हो विराधना नहीं ही करनी चाहिये, किन्तु यदि कोई चारा न हो तो ऐसी हालत में विराधना भी की जा सकती है (जइ सक्कर तो अविराहिंतेहि, विराहिंतेहिं वि ण दोसो, पीठिका, साइक्लोस्टाइल्ड प्रति, पृ० ९० । यहाँ बताया गया है कि जैसे मंत्रविधि से विषमक्षण • करने पर वह सदोष नहीं होता, इसी तरह विधिपूर्वक की हुई हिंसा दुर्गति का कारण नहीं होती-जहा विसं विधीए मंतपरिग्गहितं खज्जमाणं अदोसाय भवति, अविधीए पुण खज्जमाणं मारगं भवति, तहा हिंसा विधीए मंतेहिं जण्णजापमादीहि कजमाणा ण दुग्गतिगमणाय भवति, तम्हा णिरवायता पस्सामो हिंसा विधीए कप्पति काउं, एवं दिलुतेण कप्पमकप्पं कजति, अकप्पं कप्पं कजति । निशीथचूर्णी, साइक्लोस्टाइल्ड प्रति, १५, पृष्ठ ९५५ । महाभारत, शांतिपर्व (१२१४१ आदि) में आपद्धर्म उपस्थित होने पर विश्वामित्र ऋषि को चोरी करने के लिये वाध्य होना पड़ा। 'जीवन् धर्म चरिष्यामि' ( यदि जीता रहा तो धर्म का आचरण कर सकेगा) का यहाँ समर्थन किया गया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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