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________________ १५६ प्राकृत साहित्य का इतिहास करते, इसलिये इन्द्र ने उन्हें खत्तियकुंडग्गाम के गणराजा काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ की पत्नी वशिष्ठगोत्रीय त्रिशला के गर्भ में परिवर्तित कर दिया । कौण्डिन्यगोत्रीय यशोदा से उनका विवाह हुआ । महावीर ३० वर्ष की अवस्था तक गृहवास में रहे, और माता-पिता के कालगत हो जाने पर अपने ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन की अनुज्ञा लेकर ज्ञातृखंड नामक उद्यान में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की । साधुकाल में उन्हें अनेक उपसर्ग सहन करने पड़े । १२ वर्ष उन्होंने तप किया और जंभियग्राम के बाहर उज्जुवालिया नदी के किनारे तप करते हुए उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अट्ठियग्गाम, चम्पा, पृष्ठचम्पा, वैशाली, वाणियगाम, नालन्दा, मिथिला, भदिया, आलंभिया, श्रावस्ति, पणियभूमि और मज्झिमपावा में उन्होंने चातुर्मास व्यतीत करते हुए ३० वर्ष तक विहार किया । तत्पश्चात् ७२ वर्ष की अवस्था में उन्होंने निर्वाणलाभ किया । इस शुभ अवसर पर काशी-कोशल के नौ मल्लकि और नौ लिच्छवी नामक १८ गणराजाओं ने सर्वत्र प्रकाश कर बड़ा उत्सव मनाया । महावीरचरित्र के पश्चात् पाव, नेमी, ऋषभदेव तथा अन्य तीर्थंकरों का चरित्र लिखा गया है। कल्पसूत्र के दूसरे भाग में स्थविरावली के गण, शाखा और कुलों का उल्लेख है, जिनमें से कई मथुरा के ईसवी सन् की पहली शताब्दी के शिलालेखों में उत्कीर्ण हैं । तीसरे भाग में सामाचारी अर्थात् साधुओं के नियमों का विवेचन है। नौवीं दशा में महामोहनीय कर्मबन्ध के तीस स्थानों का प्ररूपण है । इस प्रसंग पर महावीर चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में समवस्मृत होते हैं और उनके व्याख्यान के समय राजा कूणिक (अजातशत्रु ) अपनी रानी धारिणी के साथ उपस्थित रहता है। दसवें अध्ययन में नौ निदानों का वर्णन है । महावीर के राजगृह १. ललितविस्तर (पृष्ठ २०) में भी कहा है कि बोधिसत्व तीन कुलों में उत्पन्न नहीं होते।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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