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________________ १३८ प्राकृत साहित्य का इतिहास मार्ग के अनुसार मार्गजन्य कंटक, सर्प और शीत के कष्टों से बचने के लिये, रुग्ण अवस्था में अर्श की व्याधि से पीड़ित होने पर, सुकुमार राजा आदि के निमित्त, पैर में फोड़ा आदि हो जाने पर, आँखें कमजोर होने पर, बाल-साधुओं के निमित्त, आर्यों के निमित्त तथा कारणविशेष उपस्थित होने पर जूते धारण करने का विधान है )। तत्पश्चात् प्रमाण से अतिरिक्त वस्त्र रखने और बहुमूल्य वस्त्र धारण करने का निषेध है (इस प्रसंग पर भाष्यकार ने साहरक', रूपग और नेलक आदि सिक्कों का उल्लेख किया है)। भिक्षु को अखण्ड वस्त्र धारण करने का विधान है। सागारिक (साधु को रहने का स्थान देनेवाला गृहस्थ ) के दिये हुए भोजन ग्रहण करने का निषेध है । शय्या-संस्तारक रखने के सम्बन्ध में नियमों का उल्लेख किया है। जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक की उपधि का वर्णन है। तीसरे उद्देशक में ८० सूत्र हैं जिन पर १४३८-१५५४ भाष्य की गाथायें हैं। पहले सूत्र में आगंतगार (धर्मशाला, मुसाफिरखाना आदि ), आरामागार या गृहपति के कुल आदि में जोरजोर से चिल्लाकर आहार आदि माँगने का निषेध है | गृहपति के मना करने पर भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने का निषेध है। संखडि (भोज) के स्थान पर उपस्थित होकर अशन-पान ग्रहण करने का निषेध है। पैरों के प्रमार्जन, परिमर्दन, प्रक्षालन आदि का निषेध है। शरीर के प्रमार्जन, संवाहन, परिमर्दन आदि का निषेध है। फोड़े आदि के उपचार करने का निषेध है। लम्बे बढ़े हुए बाल, नख आदि के काटने का निषेध है। दाँत, ओष्ठ आदि के प्रमार्जन अथवा धोने आदि का निषेध है। शरीर के स्वेद, जल्ल, मल्ल आदि अथवा आँख की ढीढ़, कान का मैल आदि के साफ करने का निषेध है। वशीकरणसूत्र (ताबीज़). बना कर देने का निषेध है । यहाँ मृतकगृह (भाष्यकार १. एक इस्लाम-पूर्व सिक्का, जो सेबियन ( Sabean ) सिक्के के नाम से कहा जाता था।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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