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________________ १२३ १७३ दस प्रकीर्णक चउसरण पाउरपञ्चक्खांण महापच्चक्खाण भत्तपरिणय तन्दुलवेयालिय संथारग गच्छायार गणिविज्जा देविदथय मरणसमाही तित्योगालियपयन्नु . अजीवकल्प सिद्धपाहुड आराधनापताका द्वीपसागरप्रज्ञप्ति जोइसकरंडग अंगविज्जा पिंडविसोहि तिथिप्रकीर्णक सारावलि पज्जंताराहणा जीवविभक्ति कवचप्रकरण १२३-१२६ | पंचकप्प १६१ जीयकप्पसुत्त १२४ । मूलसूत्र १६३-१८ " उत्तरज्मयण १६३ श्रावस्सय १७२ १२५ दसवेयालिय १२७ पिंडनिज्जुत्ति १८० ओहनिज्जुत्ति १८२ पक्खियसुत्त १८६ खामणासुत्त वंदित्तुसुत्त १८७ इसिभासिय १३० नन्दी और अनुयोगदार १८८-१६२ नन्दी १८८ अनुयोगद्वार १९० १३१ तीसरा अध्याय , आगमों का व्याख्या साहित्य (ईसवीसन की दूसरी शताब्दी से ईसवी सन् की १६वीं शताब्दी तक) १६३-२६८ निज्जुत्ति-भास-चुण्णि-टीका १९३-१९९ नियुक्ति-साहित्य १६६-२१० आचारांगनियुक्ति १९९ सूत्रकृतांगनियुक्ति २०१ सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति २०२ १३३-१६२ बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ१३४ नियुक्ति .१४६ दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति १४९ उत्तराध्ययननियुक्ति १५४ आवश्यकनियुक्ति २०४ १५७ । दशवैकालिकनियुक्ति जोणिपाहुड . अंगचूलिया आदि छेदसूत्र .२०३ निसीह महानिसीह . ववहार दससुयक्खंध कप्प अथवा बृहत्कल्प
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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