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________________ जम्बुद्दीवपन्नत्ति उल्लेख किया है। पहले प्राभृत में दो सूर्यों का उल्लेख है।' जब सूर्य दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और पूर्व दिशाओं में घूमता है तो मेरु के दक्षिण, पश्चिम, उत्तर और पूर्ववर्ती प्रदेशों में दिन होता है । भ्रमण करते हुए दोनों सूर्यों में परस्पर कितना अंतर रहता है, कितने द्वीप-समुद्रों का अवगाहन करके सूर्य भ्रमण करता है, एक रात-दिन में वह कितने क्षेत्र में घूमता है आदि का वर्णन इस प्राभृत में किया गया है । दूसरे प्राभृत में सूर्य के उदय और अस्त का वर्णन है। इस संबंध में अन्य अनेक मान्यताओं का उल्लेख है। तीसरे प्राभृत में चन्द्र-सूर्य द्वारा प्रकाशित द्वीप-समुद्रों का वर्णन है। चौथे प्राभृत में चन्द्र-सूर्य के आकार आदि का प्रतिपादन है। छठे प्राभृत में सूर्य के ओज का कथन है। दसवें प्राभृत में नक्षत्रों के गोत्र आदि का उल्लेख है। इनमें मौद्गल्यायन, सांख्यायन, गौतम, भारद्वाज, वासिष्ठ, काश्यप, कात्यायन आदि गोत्र मुख्य हैं। कौन से नक्षत्र में कौन सा भोजन लाभकारी होता है, इसका वर्णन है। पूर्वाफाल्गुनी में मेढ़क का, उत्तराफाल्गुनी में नखवाले पशुओं का और रेवती में जलचर का मांस लाभकारी बताया है । अठारहवें अध्याय में सूर्य-चन्द्र के परिभ्रमण का वर्णन है । बाईसवें अध्याय में नक्षत्रों की सीमा, विष्कंभ आदि का प्रतिपादन है । तेरहवें प्राभृत में चन्द्रमा की हानि वृद्धि का उल्लेख है। जम्बुद्दीवपन्नत्ति ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति पर मलयगिरि ने टीका लिखी थी, लेकिन वह नष्ट हो गई। तत्पश्चात् इस पर कई टीकायें लिखी गई। १. भास्कर ने अपने सिद्धांतशिरोमणि और ब्रह्मगुप्त ने अपने स्फुटसिद्धांत में जैनों की दो सूर्य और दो चन्द्र की मान्यता का खंडन किया है। लेकिन डॉक्टर थीबो ने बताया है कि ग्रीक लोगों के भारतवर्ष में आने के पहले जैनों का उक्त सिद्धांत सर्वमान्य था। देखिये जरनल ऑव द एशियाटिक सोसाइटी ऑव बंगाल, जिल्द ४९, पृष्ठ १०७ आदि, १८१ आदि, 'आन द सूर्यप्रज्ञप्ति' नामक लेख ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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