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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास आदि का ; कुल-आर्यों में उग्र, भोग, आदि का ; कर्म-आर्यों में कपास, सूत, कपड़ा आदि वेचनेवालों का, और शिल्प-आर्यों में बुनकर, पटवे, चित्रकार, मालाकार आदि का उल्लेख किया गया है। अर्धमागधी बोलनेवालों को भाषा-आर्य कहा है। इसी प्रसंग में ब्राह्मी, यवनानी, खरोष्ट्री, अंकलिपि, आदर्शलिपि आदि का उल्लेख है। ___ भाषा नाम के ग्यारहवें पद का विवेचन उपाध्याय यशोविजय जी ने किया है, जिसका गुजराती भावार्थ पंडित भगवानदास हर्षचन्द्र ने प्रज्ञापनासूत्र द्वितीय खंड में दिया है। सूरियपन्नत्ति ( सूर्यप्रज्ञप्ति) सूर्यप्रज्ञप्ति' पर भद्रबाहु ने नियुक्ति लिखी थी जो कलिकाल के दोष से आजकल उपलब्ध नहीं है ! इस पर मलयगिरि ने टीका लिखी है। इस ग्रन्थ में सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों की गति आदि का १०८ सूत्रों में, २० प्राभृतों में विस्तारसहित वर्णन है । बीच-बीच में ग्रन्थकार ने इस विषय की अन्य मान्यताओं का भी १३ वरस (कौशांबी), १४ शांडिल्य (नन्दिपुर), १५ मलय (भदिलपुर), १६ मत्स्य ( वैराट), १७ वरणा (अच्छा), १८ दशार्ण (मृत्तिकावती), १९ चेदि (शुक्ति), २० सिन्धु-सौचीर (वीतिभय), २१ शूरसेन (मथुरा), . २२ भंगि (पापा), २३ वट्टा ( मासपुरी ?), २४ कुणाल (श्रावस्ति ), २५ लाढ़ (कोटिवर्ष), २५६ केकयीअर्ध (श्वेतिका)। इनकी पहचान के लिये देखिये जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन ऐशियेण्ट इण्डिया, पृष्ठ २५०-५६ । १. यह ग्रन्थ मलयगिरि की टीकासहित आगमोदयसमिति, निर्णयसागर प्रेस, बंबई १९१९ में प्रकाशित हुआ है। बिना टीका के मूल ग्रन्थ को समझना कठिन है। वेबर ने इस पर 'उवेर डी सूर्यप्रज्ञप्ति' नामक निबन्ध सन् १८६८ में प्रकाशित किया था। डॉक्टर आर० शामशास्त्री ने इस उपांग का संक्षिप्त अनुवाद 'ए ब्रीफ़ ट्रान्सलेशन ऑत्र महावीराज सूर्यप्रज्ञप्ति' नाम से किया है, यह देखने में नहीं आ सका।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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