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________________ १०६ प्राकृत साहित्य का इतिहास के लोग बड़े आनन्दपूर्वक रहते थे। जनसमूह से यह आकीर्ण थी। यहाँ की सीमा सैकड़ों हजारों हलों से खुदी हुई थी, और बीज बोने योग्य थी। गाँव बहुत पास-पास थे। यहाँ ईख, जौ और धान की प्रचुर खेती होती थी। गाय, भैंस, और भेड़ प्रचुर संख्या में थीं। यहाँ सुंदराकार चैत्य और वेश्याओं के अनेक सन्निवेश थे। रिश्वतखोर, गँठकटे, चोर, डाकू और कर लेनेवाले शुल्कपालों का अभाव था। यह नगरी उपद्रवरहित थी, यहाँ पर्याप्त भिक्षा मिलती थी और लोग विश्वासपूर्वक आराम से रहते थे । यहाँ अनेक कौटुंबिक बसते थे । इस नगरी में अनेक नट, नर्तक, रस्सी पर खेल करनेवाले, मल्ल, मुष्टि से प्रहार करने. वाले, विदूषक, तैराक, गायक, ज्योतिषी, बाँस पर खेल करनेवाले, चित्रपट दिखाकर भिक्षा माँगनेवाले, तूणा बजानेवाले, वीणावादक और ताल देनेवाले लोग बसते थे। यह नगरी आराम, उद्यान, तालाब, बावड़ी आदि के कारण नंदनवन के समान प्रतीत होती थी। विशाल और गंभीर खाई से यह युक्त थी। चक्र, गदा, मुंसुंढि, उरोह (छाती को चोट पहुँचानेवाला), शतघ्नी तथा निश्च्छिद्र कपाटों के कारण इसमें शत्रु प्रवेश नहीं कर सकता था। यहाँ वक्र प्राकार बने हुए थे। यह गोल कपिशीर्षक (कँगूरे ), अटारी, चरिका ( घर और प्राकार के बीच का मार्ग), द्वार, गोपुर, तोरण आदि से रम्य थी। इस नगर की अर्गला (मूसल) और इन्द्रकील (ओट) चतुर शिल्पियों द्वारा निर्मित किये गये थे। यहाँ के बाजार और हाट शिल्पियों से आकीर्ण थे । शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क और चत्वर बिक्री के योग्य वस्तुओं और दूकानों से मंडित थे। राजमार्ग राजाओं के गमनागमन से आकीर्ण थे। अनेक सुंदर घोड़े, हाथी, रथ, पालकी, गाड़ी आदि यहाँ की परम शोभा थी। यहाँ के तालाब कमलिनियों से शोभित थे। अनेक सुन्दर भवन यहाँ बने हुए थे। चम्पा नगरी बड़ी प्रेक्षणीय, दर्शनीय और मनोहारिणी थी। चम्पा नगरी के उत्तर पूर्व में पूर्णभद्र नाम का एक सुप्रसिद्ध
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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