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________________ उववाइय १०५ पादिक ही कहना अधिक उचित है। इसमें ४३ सूत्र हैं। अभयदेवसूरि ने प्राचीन टीकाओं के आधार पर वृत्ति लिखी है, जिसका संशोधन अणहिलपाटण के निवासी द्रोणाचार्य ने किया। ग्रंथ का आरंभ चम्पा के वर्णन से होता है तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था, रिद्धत्थिमियसमिद्धा पमुइयजणजाणवया आइण्णजणमणुस्सा हलसयसहस्ससंकिट्ठविकिट्ठलट्ठपण्णत्तसेउसीमा कुक्कुडसंडेअगामपउरा उच्छुजवसालिकलिया गोमहिसगवेलगप्पभूता आयारवंतचेइयजुवइविविहसण्णिविट्ठबहुला उक्कोडियगायगंठिभेयगभडतक्करखंडरक्खरहिया खेमा णिरुवदवा सुभिक्खा वीसत्थसुहावासा अणेगकोडिकुटुंबियाइण्णणिव्वुयसुहा णडणट्टगजल्लमल्लमुट्ठियवेलंबयकहगपवगलासगआइक्खगलंखमंसतूणइल्लतुंबवीणियअणेगतालायराणुचरिया आरामुजाणअगडतलागदीहियवप्पिणिगुणोववेया नंदणवणसन्निभप्पगासा | उव्विद्धविउलगंभीरखायफलिहा चक्कायमुसुंढिओरोहसयग्घिजमलकवाडघणदुप्पवेसा धणुकुडिलवंकपागारपरिक्खित्ता कविसीसयवट्टरइयसंठियविरायमाणा अट्टालयचरियदारगोपुरतोरणउण्णयसुविभत्तरायमग्गा छेयायरियरइयदढफलिहइंदकीला | विवणिवणिच्छेत्तसिप्पियाइण्णणिव्वुयसुहा सिंघाडगतिगचउक्कचच्चरपणियावणविविहवत्थुपरिमंडिया सुरम्मा नरवइपविइण्णमहिवइपहाअणेगवरतुरगमत्तकुंजररहपहकरसीयसंदमाणीयाइण्णजाणजुग्गा विमउलणवणलिणिसोभियजला पंडुरवरभवणसण्णिमहिया उत्ताणणयणपेच्छणिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । -उस काल में, उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी । वह ऋद्धियुक्त, भयवर्जित और धन-धान्य आदि से समृद्ध थी। यहाँ किया। तीसरा संस्करण पंडित भूरालाल कालिदास ने वि० सं० १९१४ में सूरत से प्रकाशित किया। अखिलभारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैनशास्त्रोद्धारसमिति, राजकोट से सन् १९५९ में हिन्दी-गुजराती अनुवाद सहित इसका एक और संस्करण निकला है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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