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________________ दिट्टिवाय दूसरी परंपरा के अनुसार आर्यरक्षित जब पाटलिपुत्र से सांगोपांग चार वेदों और चतुर्दश विद्यास्थानों' का अध्ययन कर के दशपुर लौटे तो वहाँ उनका बहुत जोरशोर से स्वागत किया गया | जब वे अपनी माता के पास पहुंचे तो उसने पूछा-"बेटा ! तुमने दृष्टिवाद का भी अध्ययन किया या नहीं ?" आर्यरक्षित ने उत्तर दिया-"नहीं।" उनकी माँ ने कहा, "देखो, हमारे इक्षुगृह में तोसलिपुत्र आचार्य ठहरे हुए हैं। तुम उनके पास जाओ, वे तुम्हें पढ़ा देंगे।" यह सुनकर आर्यरक्षित' इक्षुघर में पहुँचे । वे सोचने लगे-मुझे दृष्टिवाद के नौ अंग तो पढ़ ही लेने चाहिये, दसवाँ तो समस्त उपलब्ध है नहीं। उसके बाद वे आचार्य तोसलिपुत्र के समक्ष उपस्थित हुए। उन्होंने पूछा"क्यों आये हो ?" आर्यरक्षित ने उत्तर दिया-"दृष्टिवाद का अध्ययन करने ।" आचार्य ने कहा-"लेकिन बिना दीक्षा दिये दृष्टिवाद हम नहीं पढ़ाते ।" आर्यरक्षित ने उत्तर दिया-"दीक्षा ग्रहण करने के लिये मैं तैयार हूँ ।” फिर उन्होंने कहा-"यह सूत्र परिपाटी से ही पढ़ना पड़ता है।" आर्यरक्षित ने उत्तर दिया-"उसके लिये भी मेरी तैयारी है ।” तत्पश्चात् आर्यरक्षित ने आचार्य से अन्यत्र चलकर रहने की प्रार्थना की । वहाँ पहुँच कर आर्यरक्षित ने दीक्षा ग्रहण की और ग्यारह अंगों का अध्ययन किया | तोसलिपुत्र को जितना दृष्टिवाद का ज्ञान था उतना उन्होंने पढ़ा दिया । उस समय युगप्रधान आर्यवज्र (वनस्वामी) उज्जयिनी में विहार कर रहे थे। पता चला कि वे दृष्टिवाद के बड़े पंडित हैं। आर्यरक्षित उज्जयिनी के लिये रवाना हो गये । आर्यवज्र के पास पहुँचकर उन्होंने नौ पूर्वो का ज्ञान प्राप्त किया । दसवाँ उन्होंने आरंभ किया ही था कि इतने में आर्यरक्षित के लघु भ्राता फल्गुरक्षित उन्हें लिवाने आ गये। आर्यरक्षित ने फल्गुरक्षित को दीक्षित कर लिया और वह भी वहीं रहकर १. शिक्षा, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष, कल्प (छह अंग), चार वेद, मीमांसा, न्याय, पुराण और धर्मशास्त्र।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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