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________________ पण्हवागरणाई मुद्रा बनानेवाले, और कपटी साधुओं आदि का उल्लेख है । यहाँ नास्तिकवादी, वामलोकवादी, असद्भाववादी आदि के मतों का विवेचन है। तीसरे अदत्तादान नामक द्वार में बिना दी हुई वस्तु के ग्रहण करने का विवेचन है। हस्तलाघव (हाथ की सफाई) को अदत्तादान का एक प्रकार कहा गया है। चोरी करनेवालों में तस्कर, साहसिक, ग्रामघातक, ऋणभंजक (ऋण नहीं चुकानेवाले ), राजदुष्टकारी, तीर्थभेदक, गोचोरक आदि का उल्लेख है। संग्राम तथा अनेक प्रकार के आयुधों के नाम गिनाये गये हैं। परद्रव्य का अपहरण करनेवाले जेलों में विविध बंधनों आदि द्वारा किस प्रकार यातना भोगते हैं, इसका विस्तृत वर्णन है । चौथे द्वार में अब्रह्म का विवेचन है। इसे प्रामधर्म भी कहा है। अब्रह्मसेवन करनेवाले विषयभोगों की तृप्ति हुए बिना ही मरणधर्म को प्राप्त करते हैं । यहाँ भोगोपभोगसंबंधी हाथी, घोड़ा, बहुमूल्य वस्त्र, सुगन्धित पदार्थ, आभूषण, वाद्य, मणि, रत्न आदि राजवैभव का वर्णन है। तत्पश्चात् मांडलिक राजा व युगलिकों का वर्णन किया गया है। सीता, द्रौपदी, रुक्मिणी, पद्मावती, तारा, कांचना (कुछ लोग रानी चेलना को ही कांचना कहते हैं), रक्तसुभद्रा, अहल्या आदि त्रियों की प्राप्ति के लिये युद्ध किये जाने का उल्लेख है। पाँचवें द्वार में परिग्रह का कथन है । परिग्रह का संचय करने के लिये लोक अनेक प्रकार के शिल्प और कलाओं का अध्ययन करते हैं, असि, मसि, वाणिज्य, अर्थशास्त्र और धनुर्विद्या का अभ्यास करते हैं और वशीकरण आदि विद्यायें सिद्ध करते हैं। लोभ परिग्रह का मूल है। दूसरे खंड के पहले द्वार में अहिंसा का विवेचन है । अहिंसा को भगवती कहा है | यहाँ साधु के योग्य निर्दोष भिक्षा के १. मज्झिमनिकाय के महादुक्खखंध में दंड के अनेक प्रकार बताये हैं।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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