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________________ उवासगदसाओ तीसरे अध्ययन में वाराणसी के चुलणीपिता गृहपति की कथा है। चुलणीपिता को भी देवजन्य उपसर्ग सहन करना पड़ा। चुलणीपिता अपना ध्यान भंग कर उस पिशाच को पकड़ने के लिये दौड़ा | इस समय उसकी माता ने उसे समझाया और भग्न व्रतों का प्रायश्चित्त करके फिर से धर्मध्यान में लीन होने का उपदेश दिया। चौथे अध्ययन में सुरादेव गृहपति की कथा है | यहाँ भी देव उपसर्ग करता है। पाँचवें अध्ययन में चुल्लशतक की कथा है । छठे अध्ययन में कुंडकोलिक श्रमणोपासक की कथा है। मंखलिगोशाल की धर्मप्रज्ञप्ति को महावीर की धर्मप्रज्ञप्ति की अपेक्षा श्रेष्ठ बताया गया, लेकिन कुंडकोलिक ने इस बात को स्वीकार न किया । सातवें अध्ययन में पोलासपुर के आजीविकोपासक सद्दालपुत्र कुंभकार की कथा है। नगर के बाहर सद्दालपुत्र की पाँच सौ दुकानें थीं। वह महावीर के दर्शनार्थ गया और उसने उन्हें निमंत्रित किया । गोशाल के नियतिवाद के संबंध में दोनों में चर्चा हुई जिसके फलस्वरूप सहालपुत्र ने आजीविकों का धर्म त्यागकर महावीर का धर्म स्वीकार कर लिया। सद्दालपुत्र की भार्या ने भी महावीर के बारह व्रतों को अंगीकार किया | बाद में मंखलिगोशाल ने महावीर से भेंट की। महावीर को यहाँ महाब्राह्मण, महागोप, महासार्थवाह, महाधर्मकथक और महानियमिक शब्दों द्वारा संबोधित किया है। ___आठवें अध्ययन में महाशतक गृहपति की कथा है । महाशतक के अनेक पत्नियाँ थीं। रेवती उनमें मुख्य थी। रेवती अपनी सौतों को मार डालने के षड्यंत्र में सफल हुई। वह बड़ी मांसलोलुप थी। महाशतक का धर्मध्यान में समय बिताना उसे बिलकुल पसन्द न था, इसलिये वह प्रायः उसकी धर्म
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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