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________________ नायाधम्मकहाओ सातवें अध्ययन का नाम रोहिणी है । राजगृह नगर के धन्य सार्थवाह के चार पतोहुएँ थीं जिनके नाम थे-उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी | एक बार धन्य ने उनकी परीक्षा ली और उनकी योग्यतानुसार उन्हें घर का कामकाज सौंप दिया | उझिका को घर के झाड़ने-पोंछने, भोगवती को घर की रसोई बनाने, रक्षिता को घर के माल-खजाने की देखभाल करने का काम सौंपा और रोहिणी को सारे घर की मालकिन बना दिया । आठवें अध्ययन में मल्ली की कथा है। मल्ली विदेहराजा की कन्या थी। पूर्व जन्म में उसने स्त्री नामगोत्र और तीर्थंकर नामगोत्र कर्म का बंध किया था जिससे उसे तीर्थकर पद की प्राप्ति हुई। यहाँ तालजंघ पिशाच का विस्तृत वर्णन किया गया है। लोग इन्द्र, स्कंध, रुद्र, शिव, वैश्रमण, नाग, भूत, यक्ष, अज्जा, और कोकिरिया की पूजा-उपासना किया करते थे। यहाँ सुवर्णकार श्रेणी और चित्रकार श्रेणी का उल्लेख है। चोक्खा नाम की परिव्राजिका शौचमूलक धर्म का उपदेश देती थी। अगडदर्दुर (कूपमंडूक) और समुद्रदर्दुर का सरस संवाद दिया गया है । मल्ली ने पंचमुष्टि लोच करके श्रमण-दीक्षा स्वीकार की और संमेदशैल ( आधुनिक पारसनाथ हिल ) शिखर पर पादोपगमन धारण कर सिद्धि पाई। . नौवें अध्ययन में जिनपालित और जिनरक्षित नामके माकंदीपुत्रों की कथा है। आँधी-तूफान आने पर समुद्र में जहाज के डूबने का उत्प्रेक्षाओं से पूर्ण सुन्दर वर्णन है। नारियल के १. प्रोफेसर लॉयमन ने अपनी जर्मन पुस्तक 'बुद्ध और महावीर' (नरसिंहभाई ईश्वरभाई पटेल द्वारा गुजराती में अनूदित ) में बाइबिल की मेथ्यू और ल्यूक की कथा के साथ इसकी तुलना की है। . २. विस्तार के लिए देखिये जगदीशचन्द्र जैन, लाइफ इन ऐशियेण्ट इण्डिया, पृष्ठ २३५-२२५। ६प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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