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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास ___ तीसरे अध्ययन का नाम अंडक है। इसमें मयूरी के अंडों के दृष्टान्त द्वारा धर्मोपदेश दिया है। देवदत्ता नामकी गणिका का यहाँ सरस वर्णन है । मयूरपोषक मोर के बच्चों को नृत्य की शिक्षा दिया करते थे। ___ कूर्म नाम के चौथे अध्ययन में दो कछुओं के दृष्टान्त द्वारा धर्मोपदेश दिया है। . पाँचवें अध्ययन का नाम शैलक है । इसमें मद्यपायी राजर्षि शैलक का आख्यान है। द्वारका नगरी के उत्तर-पश्चिम में स्थित रैवतक पर्वत का वर्णन है। इस पर्वत के समीप नंदन नामका एक सुन्दर वन था जहाँ सुरप्रिय नामका यक्षायतन था। भगवान् अरिष्टनेमि का आगमन सुनकर कृष्ण वासुदेव अपने दल-बल-सहित उनके दर्शन के लिये चले। थावच्चापुत्त ने अरिष्टनेमि का धर्म श्रवण कर दीक्षा ग्रहण की। उधर सोगंधिया नगरी में शुक नामका एक परिव्राजक रहता था जो ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, पष्ठितंत्र और सांख्यसिद्धांत का पंडित था। शौचमूलक धर्म का वह उपदेश देता था। इस नगरी का सुदर्शन श्रेष्ठि शुक परिव्राजक का अनुयायी था। बाद में उसने शुक का शौचमूलक धर्म त्याग कर थावच्चापुत्त का विनयमूलक धर्म अंगीकार कर लिया। शुक परिव्राजक और थावच्चापुत्त में वाद-विवाद हुआ और शुक भी थावच्चापुत्त के धर्म का अनुयायी बन गया। कुछ समय बाद सेलगपुर के शैलक राजा ने अपने मंत्रियों के साथ शुक के समीप जाकर श्रमणदीक्षा ग्रहण की। लेकिन रूखा-सूखा, ठंढा-बासी और स्वादरहित विकाल भोजन करने के कारण उसके सुखोचित सुकुमार शरीर में असह्य वेदना हुई। इस समय अपने पुत्र का आमंत्रण पाकर वह उसकी यानशाला में जाकर रहने लगा। वैद्य के उपदेश से उसने मद्य का सेवन किया । अन्त में बोध प्राप्त कर के पुंडरीकः पर्वत पर तप करते हुए उसने सिद्धि पाई। __ छठे अध्ययन में तुंबी के दृष्टान्त से जीव की ऊर्ध्वगति का निरूपण किया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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