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________________ . .. .... . .. ....................... . .. .... ... .. - पुंडरीक immorammar .:. अब नियति को. सबका कारण मानने वाला चौथा पुरुप अाता है । वे कहते हैं कि “ इस संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं । एक क्रिया को और दूसरा अक्रिया को मानता हैं । दोनों एक . ही वस्तु का कारण भिन्न भिन्न समझते हैं। उनमें जो मूर्ख होता . है, वह इस कारण को. समझता हैं कि मैं जो ‘दुःख उठाता हूँ, शोक को प्राप्त होता हूँ. पिटता हूँ, और परिताप सहन करता हूँ ... यह सब मेरे किये का फल है । उसी प्रकार दूसरा भी जब दुःखी । होता है और शोक को प्राप्त होता है, तो वह भी उसके किये का ..फल है । वह मूर्ख मनुष्य अपना तथा दूसरे के दुःख का कारण .. यही मानता है । परन्तु बुद्धिमान् इसका कारण यह समझता है कि . मुके जो कुछ भी दुःख और शोक प्राप्त होता है, वह मेरे । कर्मों का ___ . फल नहीं; उसी प्रकार दूसरों को भी उनके दुःख और शोक का कारण उनके कर्मों का फल नहीं है; यह सब नियति होनहार के अनुसार होता रहता है । ये सब सस्थावर जीव नियति के कारण '. ही शरीर सम्बन्ध को प्राप्त करते हैं - और बाल्य-यौदन, अंधापन, लंगडापन, रोग शोक आदि अवस्था को भोगते हैं तथा. उसी प्रकार . .. नियति के कारण शरीर का त्याग करते हैं । वे क्रिया-प्रक्रिया सुकृत दुष्कृत आदि कुछ नहीं मानते । और इस कारण विविध प्रवृतियों से विविध कामभोगों को भोगते रहते हैं । इस कारण वे अनार्य एक पार भी पहूँचने के बदले में बीच में ही कामभागों में डूब मरते हैं । नियति को माननेवाले चौथे पुरुप का यह वर्णन पूरा हुअा | . .. इस प्रकार वे अपनी बुद्धि, रुचि, तथा प्रकृति के अनुसार घरबार छोड़कर आर्य मार्ग को न प्राप्त करके बीच में ही काम भोगों में फंस जाते हैं । [1]
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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