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________________ ५४ सूत्र कृतांग सूत्र (अक्रियावादी तो क्रिया या उसके फल में ही विश्वास नहीं करते और उनमें से कोई तो प्रात्मा को निष्क्रिय मानते हैं, कोई आत्मा को । ही नहीं मानते । कुछ जगत् को मायारूप मानते हैं या ईश्वर, नियत, काल को प्राणी की क्रियाओं के लिये जिम्मेदार मानते हैं। प्राणी कुछ नहीं करता या नहीं कर सकता, ऐसा वे मानते हैं। ) ये अक्रियावादी . कर्भ और उसके फल से डर कर कहते हैं कि क्रिया ही नहीं है। . - अपने सिद्धान्तों के सम्बन्ध में निश्चय न होने से वे कहते हैं कि यह तो हमें यों जान पड़ता है। पूछने पर चे निश्चित कुछ न बता कर . कहते हैं कि यह तो दो पक्ष की बात है, यह तो एक पक्ष की बात है; ऐसा कहा करते हैं। कर्म तो छः · इन्द्रियां करती हैं (हम नहीं करते) ऐसा कहते हैं। वेबूझ अक्रियावादी बहुत कुछ ऐसा ही ( परस्पर विरुद्ध) कहते हैं। । उनके मत से तो सार। जगत ही वन्ध्य (नियत बात से नया कुछ नहीं होता) और नियत (जो कुछ होता है, उसका कुछ फल नहीं है) है। उनके मत से सूर्य . का उदय या अस्त नहीं होता, चन्द्रमा बढ़ता या घटता नहीं, नदियाँ बहती नहीं और हवा चलती नहीं ! अांखों वाला अन्धा दीपक के . . होते हुए भी कुछ नहीं देख सकता, उसी प्रकार ये बिगडी बुद्धि के अक्रियावादी क्रिया होते हुए भी उसको देखते नहीं हैं। [४ ] आगे, ज्योतिप शास्त्र. स्वप्न शास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, शकुनशास्त्र. उत्पात-शास्त्र, और अष्टांग निमित्त शास्त्र का अभ्यास करके अनेक लोग भविष्य की क्रिया और उसके फल को जान ही लेते हैं न? यदि क्रिया और उसका फल न हो तो फिर ऐसा कैसे हो . सकता है ? तो भी अक्रियावादी तो ऐसा ही कहेंगे कि सब शास्त्र लच्चे थोडे ही है ? वे तो स्वयं शास्त्रों को जानते ही नहीं, फिर तो उन्हें झूठ कहने में कुछ बाधा नहीं पाती। [६-१०]
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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