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________________ चाहरवाँ अध्ययन -(0) . वादियों की चर्चा श्री सुधर्मास्वामी कहने लगे हे श्रायुष्यमान् ! अब मैं लोगों में प्रचलित वादों के सम्बन्ध में कहता हूँ, उसे सुन । इन सब के मुख्य चार भाग हो सकते हैं(१) क्रियावाद (२) क्रियावाद ( ३ ) विनयवाद, और (४) ग्रज्ञातवाद । [१] ( अज्ञानवादी कहते हैं कि परलोक-स्वर्ग और नरक तथा श्रच्छे बुरे कर्मों के फल आदि के विषय में हम कुछ नहीं जान सकते; उनका अस्तित्व हैं, यह नहीं कहा जा सकता; भी नहीं कहा जा सकता ) ये अज्ञानवादी होते हुए की सम्बद्ध बातें कहते हैं | अपनी नपा सके हैं। वे स्वयं अज्ञानी होने के कारण श्रज्ञानी लोगों को यों ही झूठ-मूठ समझाते रहते हैं । [ २ ] अथवा नहीं है, यह तर्क-वितर्क में कुशल शंकाओं का वे पार, ( विनयनादी याचार की अनेक तुच्छ और अनावश्यक बातों को ही सर्वस्व मान कर उसी में लीन रहते हैं, इसके सिवाय वे कुछ मानने वाले और विचार ही नहीं सकते) ऐसे ये सत्य को असत्य साधु को साधु कहने वाजे विनयवादी किसी के पूछने पर अपने सिद्धान्तों को सत्य बतलाने लगते हैं । [ ३ ]
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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