SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - .....vom.mvvv varta...vuvvvvwar.v - - vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvi विभिन्न वादों की चर्चा nnnnvahin ... .. .nnnn.. . ... ........ . ........ unsar.A ....Ar - A R - गतानुगतिक माने हुए ग्रह और ऐसे सब लोकवाळे सावधान होकर भिक्षु को जानना चाहिये। [१-७]. . विशेप, ज्ञान मात्र का सार तो यही है कि, किसी भी जीव को हिंसा न करे। प्राणी बेल (जंगम) या स्थावर निश्चित कारणों , . __ यह से होते हैं, जीव की दृष्टि से तो सब समान हैं। बस (जंगम ) प्राणियों को तो देखकर ही जान सकते हैं । अपने समान किसी को भी दुःख अच्छा नहीं लगता, इसलिये किसी की हिंसा न करे। अहिंसा का सिद्धान्त तो यही है । अतएव मुमुक्षु चलने, सोने, बैठने, . खाने-पीने में सतत् जागृत संयमी और निरासक्त रहे तथा क्रोध, मान, माया और लोभ छोड़े। इस प्रकार समिति (पांच समितियों-सम्यक् प्रवृत्तियों से युक्त-सम्यक् प्राचार वाला) हों; तथा कर्म आत्मा से लिप्त न हो इसके लिये अहिंसा सत्या पांच महाव्रतरूपी संवर (अर्थात् कविरोधक छत्र) द्वारा सुरक्षित बने । ऐसा करके कर्मवन्धन के इस लोक में पवित्र भिक्षु पूर्णता प्राप्त करने तक रहे। [८-१३] -ऐसा मैं (सुधर्मास्वामी) कहता हूं।
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy