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________________ विभिन्न वादों की चर्चा [3 ७ (३) और उस दृष्टान्त के सम्बन्ध में तो क्या कहूं किसी श्रद्धालु गृहस्थ के द्वारा भिक्षु के लिये बनाया हुआ भोजन फिर वह हजार हाथों से निकल कर क्यों न मिले परन्तु निपिन्छ हो तो खाने वाले को दोष तो लगेगा ही । परन्तु कितने ही श्रमण इस बात को स्वीकार नहीं करते । संसार में खतरा कहां है । इसका इनको भान नहीं है, वे तो वर्तमान सुख की लालसा के मारे हुए इस में पडे हैं फिर तो वे पानी के चढाव के समय किनारे पर श्राई हुई मछली की भांति उतार श्राने पर जमीन पर रह जाने से नाश को प्राप्त होते हैं । [ १-४ ] * यागे कितने ही दूसरे प्रकार के मूर्ख वादियों के सम्बन्ध में कहता हूं उसको सुन । कोई कहते हैं, देव ने इस संसार को बनाया है, कोई कहते हैं ब्रह्माने । कोई फिर ऐसा कहते हैं, जडचेतन से परिपूर्ण तथा सुख दुःख वाले इस जगत को इश्वरने रचा और कोई कहते हैं; नहीं, स्वयंभू ग्रात्मा में से इस जगत् की उत्पत्ति हुई है। ऐसा भी कहते हैं कि मृत्यु ने अपनी शाश्वत जगत् की रचना की है । कोई ब्राह्मण है कि इस संसार को थंडे में से उत्पन्न हुए है । [१७] मायाशक्ति से इस और श्रमण कहते प्रजापति ने रचा सत्य रहस्य को न समझने गले ये वादी मिथ्या-भाषी हैं । उन्हें वास्तविक उत्पत्ति का पता नहीं है । ऐसा जानो कि यह संसार अच्छे-बुरे कर्मों का फल है । पर इस सच्चे कारण को न जाननेवाले ये वादी संसार से पार होने का मार्ग तो फिर कैसे जान सकते हैं [ ८-१० ]
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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